Thursday, November 26, 2009

करगिल की विधवा(मेजर रतन जांगिड )

करगिल की विधवा
करगिल की लड़ाई जारी थी। जिन घरों के फौजी लड़ रहे थे उन घरों के सारे लोग गमकीन थे। शाम का चूल्हा भी इतना लंबा नहीं जलता था जितना कि लड़ाई से पहले। पूरे दिन-रात गांव व शहरों में एक ही चर्चा रहती थी। आज 'टाइगर हिल' फतह कर ली है, सुनकर सबके सीने तन गए। पन्ना पिछले कई दिनों से मन के बवंडर में उलझी हुई थी। पति रामेश्वर करगिल की चोटियों में था। उसे तो बस इतना पता लगता कि लड़ रहे हैं और आगे बढ़ रहे हैं और जल्दी ही पाकिस्तानी घुसपैठियों को पीछे धकेल देंगे।
कितना साथ बिताया रामेश्वर के साथ। एक रोज वह गिनने लगी। दो साल भी शादी को पूरे नहीं हुए। पहली बार छै: रोज, फिर दूसरी बार पन्द्रह रोज की छुट्टी आया तो ग्यारह रोज, फिर एक बार एक महिना तीन दिन और पिछली बार तेइस दिन, कुल मिलकर तेहतर दिन। ढाई महिने भी पूरे नहीं। लेकिन याद हमेशा रहता है, बिल्कुल सामने। पता नहीं कैसे गोले गिरते होंगे और रामेश्वर कहां छिपता होगा। कई कल्पनाएं करती हुई वह व्यथित रहती।
फिर एक रोज समाचार भी आ गया। रामेश्वर शहीद हो गया। जान दे दी भारत-मां के लिए। पूरा देश गौरवान्वित हो गया लेकिन उसे क्या मिला। एक असह्य दर्द, लंबी पीड़ा और जिंदगीभर की रूलाई। कितनी दहाड़ी थी जब उसने यह सुना और फिर पागलों जैसी हो गई थी जब गांव में रामेश्वर का शव आया।
दाह संस्कार में शामिल थे जिले के कलक्टर, बड़े-बड़े हाकिम, अफसर, मंत्री, नेता और आसपास के गांवों के लोग। 'जब तक सूरज चांद रहेगा, रामेश्वर तेरा नाम रहेगा' के नारों से आसमान गूंज उठा। लेकिन उसके मन में क्या तूफान था, उसे तो वही समझ रही थी।
पूरे घर में मायूसी थी। सास-ससुर रो-रोकर पागल हो गए लेकिन अब वह नहीं रोती। कितना रोएगी। फिर सरकार ने भी लाखों रुपये देने की घोषणा कर दी। साथ ही कई एकड़ जमीन देने का वादा भी। पेंशन भी मिलेगी। पैसा खूब मिलेगा लेकिन रामेश्वर कभी नहीं आएगा।
बारह रोज से बीस रोज और फिर डेढ़ महिना। सास-ससुर की तमाम इच्छाएं और उम्मीद पन्ना पर आ टिकी। इकलौता बेटा था और कोई नहीं जो अब उनका भरण-पोषण कर सके।
गांव वाले राय देते, तमाम पैसा बैंक में डाल दो और ब्याज से काम चलाओ। सास-ससुर रोते रहते और पन्ना को अब पैसे से क्या मोह। जब रामेश्वर नहीं तो पैसा किसके लिए रखेगी। कहां खर्च करेगी। किसके लिए श्रृंगार करेगी।
एक रोज उसके गांव की सहेली चंदा उससे मिलने आई। दोनों गले लगकर खूब रोई। पन्ना को भी सुकून मिला कि कोई तो है जो अब मन की बात पूछेगा। एकांत में दोनों बैठकर बातें करने लगी।
''पन्ना तुम्हारे सामने तो पूरी जिंदगी पड़ी है।''
''हाँ................।''
''कब तक अकेली बैठी रहोगी।''
''जब तक भगवान चाहेगा।''
''अब तो भगवान नहीं, तुम्हें ही करना पड़ेगा।''
''क्या करूं।''
''देख, छोड़ यह रोना-धोना। तेरी भी कोई शादी है, भला। मात्र दो-तीन महिने तो साथ रही, फिर क्या शादी। पूरा जीवन सामने है। पैसा भी पूरा तेरे ही नाम है। देख, कोई दूसरा ढूंढ ले, ऐश करेगी।''
''चन्दा, क्या बोलती है। उनकी मेरे मन में याद...........।''
''अरे ये भी ज्यादा दिन नहीं टिकने वाली। एक साल बाद ही तू महसूस करेगी। अकेलापन तुझे खा जाएगा।''
''लोग क्या कहेंगे।''
''कहने दो। यही कहेंगे कि सास-ससुर को छोड़कर चली गई।''
''मेरा मन गवाही नहीं देता।''
''तो फिर रो जिंदगी भर। फिर कभी मिलने पर मत कहना, मैंने तेरा भला नहीं चाहा।''
सुनकर पन्ना भी सोचने पर मजबूर हो गई। चन्दा की बात में सच्चाई तो है। लेकिन सास-ससुर को कौन संभालेगा। दुनिया वाले क्या कहेंगे। कई तरह की बातें उसके मन में उमड़ती रही।
चंदा तो कहकर चली गई लेकिन पन्ना के मन में उथल-पुथल मचा गई। और फिर एक रोज पन्ना के बाबा उसे लेने भी आ गए। पीहर में रहेगी तो मन हल्का हो जाएगा। सास-ससुर ने भी यही सोचा और पन्ना को बाबा के साथ पीहर भेज दिया।
पन्ना पीहर आ गई। मिलने वाली महिलाओं का घर पर तांता लगा रहता। 'क्या करेगी बापड़ी (बेचारी), कैसे गुजारेगी जिंदगी।' बार-बार महिलाएं बोलती। उसे यहां भी चैन न मिलता। न किसी सखी-सहेली से खुलकर बातें कर पाती और न ही पूरी तरह गांव की गलियों में जा पाती। बस घर पर ही रहती और जो भी मिलने आता, उसके मन के तारों को झंझाकर चला जाता।
एक रोज तो मां और बाबा ने भी कह दिया,
''बेटी, जो कुछ हो गया उसे भूल जा। अभी हम बैठे हैं न तुम्हारे लिए। फिक्र मत कर। हम तुम्हें अच्छे घर भेजेंगे।''
सुनते ही वह अवाक रह गई। मां-बाप भी उसे कहीं भेजने की सोच रहे हैं। वह धीरे से बोली,
''नहीं मां, मुझे कहीं नहीं जाना। सास-ससुर को कौन संभालेगा।''
''पागल है तू। तूने ठेका लिया है। और भी तो जीते हैं। जब तक रामेश्वर था तब तक ही वह तेरा ससुराल था। जब पति नहीं तो ससुराल को क्या धोकर पीना है।''
सुबह-शाम अब तो एक ही चर्चा रहने लगी। मां-बाप बार-बार यही कहते रहते कि उसे दूसरा घर करना है। दो हफ्ते भी नहीं बीते होंगे कि ससुरजी वापस लेने आ गए और बोले,
''बेटी, घर चल। तेरे जाने के बाद तो घर पूरा ही सूना हो गया। तू सामने रहती है तो थोड़ा मन लगा रहता है।''
''अबकी बार तो भेज देता हूँ लेकिन अगली बार नहीं। अरे अभी बच्ची है। इसने देखा भी क्या है। इसके तो पहनने-खाने के दिन आगे पड़े हैं। हमने सोच लिया है, इसका दूसरा घर बसाएंगे।'' उसके बाबा बीच में बोल पड़े।
''लेकिन हमारा क्या होगा। सब कुछ तो बहू के नाम है। आखिर बेटा हमारा भी तो था।''
''यह तो सरकार जाने। जिसके किस्मत में जो लिखा है वही मिलता है। हम अपनी बच्ची को आपके यहां अब ज्यादा दिन नहीं छोड़ेंगे।''
बेचारा ससुर चुप हो गया। उसकी आंखें गीली हो गई। खैर उसके बाबा ने पन्ना को एक बार तो उसके ससुर के साथ भेज दिया।
फिर वापस आकर ससुराल रहने लगी। पूरे गांव में बात फैल गई। पन्ना दूसरा घर बसाएगी। उसके मां-बाप भी यही चाहते हैं। घर के पास गली निकलती गांव की महिलाएं पन्ना पर फिकरा कस ही देती थी, 'कैसी करगिल की विधवा, पूरा पैसा लेकर चली जाएगी। रोएंगे बेचारे फौजी के मां-बाप।' कोई तो यहां तक भी कहती न चूकती, 'पैसा भी मिलेगा और पति भी मिलेगा, ऐश करेगी।' सुनकर वह घंटों रोती।
ज्यादा वक्त नहीं गुजरा। एक रोज उसके बाबा फिर उसके ससुराल पधार गए। पन्ना को लेकर जाएंगे। सास-ससुर ने बहुत विनती की। बाबा को समझाया कि अब पन्ना ही उनका सब कुछ है। बेटी की तरह रखेंगे। घर पर रानी की तरह रहेगी। घर पर पूरा अधिकार उसी का रहेगा। उसे यहीं रहने दो।
बाबा न माने और पन्ना को जबरदस्ती पीहर ले गए। सास ससुर रोते रह गए। बाबा के सामने वह भी अपना मुंह न खोल पाई। पन्ना फिर पीहर आकर रहने लगी।
अगला सावन आ गया। लड़कियां हिंडोलों पर पींग चढ़ाने लगी। सारी साथिनें गीत गाती और वह उन्हें देखती। मन दु:खी हो जाता। कैसी नाव पर चढ़ेगी, उसे खूद नहीं मालूम। उसके बाबा के पास कई लोग आते और बाबा उनसे चुपचाप बातें करते। लेकिन उसे पता लग ही जाता। उसका घर बसाने की तैयारी चल रही है।
बाबा महिने की महिने शहर लेकर जाते और वह कागज पर टूटा-फूटा सा लिखकर दस्तख्त कर देती। पैसा लेकर बाबा खुशी-खुशी गांव लौटते। एक दिन रात का समय था, सभी खाना खा रहे थे। उसके छोटे भाई ने बात छेड़ दी,
''बाबा, सभी अच्छी-अच्छी जगह पढ़ने जा रहे हैं। मैं ही रह गया हूँ। अगर अपने पास पैसा होता तो मैं भी दिल्ली जाकर पढ़ता।''
''अरे बेटे दु:खी क्यों होता है। बोल न अपनी जीजी को। लाखों पड़े हैं बैंक में। जब कमाने लायक हो जाएगा तो वापस लौटा देना। फिर बहन-भाई का किसने बांटा है।'' उसके बाबा बोले।
''क्यों जीजी, आप मुझे भेजेंगी दिल्ली।'' छोटे ने कहा।
''अरे क्यों उसे तंग करता है। सोजा। सुबह सब प्रबंध हो जाएगा।'' उसके बाबा ने पन्ना की ओर देखकर कहा।
वह कुछ न बोली। दूसरे रोज उसके बाबा उसे शहर के बैंक में ले गए। उसने फिर दस्तखत कर दिए और हजारों रुपये खाते से निकल गए। छोटा भाई उसी दिन शाम को ही दिल्ली रवाना हो गया। साथ में पन्ना से वह वचन भी ले गया कि जब भी पैसे की जरूरत पड़ेगी, वह देगी।
पीहर में पन्ना महसूस करने लगी कि उसके बाबा अब ज्यादा ही खुश रहते हैं। एक रोज वे मुस्कराते हुए पन्ना के पास आए। साथ में बड़ी-बड़ी मूंछों वाला एक अधेड़ सा आदमी भी था। बाबा मुस्कराते हुए पन्ना से बोले,
''बेटी, ये माणक गांव के प्रधान हैं। करोड़पति आसामी हैं। बस एक ही कमी है कि पत्नी छोड़कर चली गई है। दो ही बेटे हैं, बड़ी स्कूलों में पढ़ते हैं। तू इनका घर बसा देगी तो राज करेगी। कोई कमी नहीं होगी तुझे जिंदगी में।''
पन्ना ने देखा कि वह प्रधान महाशय मुस्करा रहा था और घनी मूंछों में वह किसी डाकू से कम नहीं लग रहा था। उसे थोड़ी सी घिन्न आई। वह गुस्से से बोली,
''बाबा, रहने दीजिए मुझे अकेली। नहीं करनी मुझे शादी।'' और वह वहां से उठकर दूसरी ओर चली गई। उसके बाबा बड़बड़ाते हुए बाहर निकल गए।
बरसात का मौसम खत्म हो चुका था। रामी मौसी आई हुई थी। बड़े प्यार से पन्ना के गले लगी। पन्ना को पास बिठाया ऐसे जैसे कि वही उसकी असली हिमतगार है। प्यार से सर पर हाथ फेरा और बोली,
''बेटी, अब तो एक साल से ज्यादा अरसा गुजर गया है। मैं तेरे लिए ही आई हूँ। मेरे जेठ का लड़का है। उम्र भी ज्यादा नहीं। पैंतीस के आसपास होगा। कद काठी का अच्छा है। बस तू हां कर दे। जिंदगी भर मेरे ही पास रहेगी।''
पन्ना को याद आया, एक बार तीन-चार साल पहले देखा था। कितनी गंदी शक्ल का आदमी था और ऊपर से कुबड़ा भी। रामी मौसी को जरा भी शर्म नहीं आई। कैसी बातें करती हैं।
''नहीं मौसी, मैंने बार-बार कह दिया है न कि मैं दुबारा शादी नहीं करूंगी।'' और वह रोने लगी।
रात को उसके बाबा और रामी मौसी ने कितना उसे बुरा-भला कहा। 'कोई उसे उठा ले जाएगा तो क्या करेगी' कैसे-कैसे डर दिखाए। पूरा जोर डाला कि वह दूसरा घर कर ले। लेकिन वह बिल्कुल टस से मस न हुई। चुपचाप सुनती रही।
छोटे भाई का भी दिल्ली से बार-बार तकाजा आ जाता। बाबा भी वक्त वेवक्त पैसा ऐंठ ही लेते थे। घर पर कुछ सामान और कपड़े भी आ गए थे। एक बार घर का रंग रोगन भी हो गया लेकिन उसमें कोई तब्दीली न आई। वह देखती रहती थी कि उसके बाबा के पास कितने लोग आते थे। सभी की एक ही ख्वाईश कि पन्ना की शादी उनके लड़के के साथ कर दो या कई ऐसे भी थे जो खुद पन्ना के साथ घर बसाना चाहते थे।

इस दौरान एक बार फिर चंदा उससे मिलने आई। दोनों सहेलियां जोहड़ की तरफ जा रही थी। वहां पर गोलू खड़ा था। पन्ना को देखते ही बोला,
''पन्ना, तू तो विधवा हो गई। लेकिन तेरे पास पैसा बहुत है। मैं तैयार हूँ। बस तू हां कह दे।''
पन्ना ने देखा उसकी आंखें गीड़ से तर थी और वह बड़ी कामुकता से पन्ना को निहार रहा था। उसे उस पर गुस्सा तो बहुत आया लेकिन चंदा को खींचती हुई वहां से हट गई।
पन्ना अब महसूस करने लगी कि क्यों लोग लालायित हैं उससे शादी करने के लिए। सारे के सारे स्वार्थी हैं। लोगों की नजर तो उसके पैसे पर है फिर वह सोने का अंडा देने वाली मुर्गी भी है। जीवन भर पेंशन मिलती रहेगी। किसी को उससे क्या लेना देना। एक विधवा से शादी करने को इतने लोग उतावले। देश में और भी तो विधवाएं हैं, फिर क्यों नहीं उनका दामन थामते। लेकिन उनके पास शायद पैसा नहीं है।
और बाबा भी मतलबी। पता नहीं किस आड़ में उसका घर बसाना चाहते हैं। क्यों लेकर आते हैं ऐसे लोगों को उसके पास। वे भी शायद कुछ ऐंठना चाहते हों ऐसे लोगों से। वह जितना भी सोचती और उलझती चली जाती।
एक रोज डाकिए ने उसे एक 'रजिस्टर्ड पत्र' थमाया। सरकार ने उसको 'गैस एजेंसी' आवंटित करने का निर्णय लिया है। पत्र पहले ससुराल गया और फिर वहां पर वह न मिली तो पीहर के पते पर सूचना भेजी गई। उसके बाबा तो सुनकर निहाल हो गए।
सर्दी का मौसम जा चुका था। वह घर के कोने वाले कमरे में सोई हुई थी। अचानक उसकी नींद खुल गई। उसने कान लगाकर सुना, उसी की ही बातें चल रही थी। वह ध्यान से सुनने लगी,
''नहीं वह मान जाएगी।'' उसके बाबा बोल रहे थे।
''मैं उसे हमेशा खुश रखूंगा। फिर गैस वाला काम मैं संभाल लूंगा और घर वह देख लेगी।''
''यह तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन आपकी पहली पत्नी का क्या होगा।''
''उसे तो मैं पास तक नहीं फटकने दूंगा। फिर बड़े-बड़े नेताओं से पूरी सांठ गांठ है। इस बार टिकट भी पक्की है। मेरे सिवाय पार्टी में दूसरा कोई है भी तो नहीं।''
''मेरे तो धन्य भाग जो आप पधारे।''
''जरा पन्ना से बात तो कर लिजिए।''
''बात क्या करनी है, समझो सब कुछ पक्का। इतना बड़ा आदमी खुद रिश्ता लेकर घर आया है, यह तो उसका भाग्य है।''
उसने खिड़की को धीरे से खोला और देखा टोपी लगाए खद्दर का कुर्ता पाजामा पहने कोई नेता बाबा से बात कर रहे हैं। उम्र भी कम नहीं, चालीस से तो ज्यादा के ही लग रहे हैं। देखकर वह धक्क रह गई। 'उसे नहीं चाहिए ऐसी गैस एजेंसी', उसने स्वयं से कहा। बाबा को क्या होता जा रहा है।
पन्ना को अब अच्छी तरह मालूम हो चुका कि लोग क्यों उसके पीछे हैं। वह तुरंत उठी और बाबा के पास जा पहुंची। हिम्मत करके सिर्फ इतना बोली,
''मुझे नहीं करनी किसी से शादी। जिसको चाहिए वह ले ले यह गैस एजेंसी।''
फिर वापस कमरे में आकर रोने लगी।
दूसरे रोज उसके मामा का लड़का मगनू आया। नेत्रहीन मगनू ने पन्ना से ढेरों बातें की। पन्ना को उसी से मालूम पड़ा कि वह एक रोज उसके ससुराल गया था किसी के साथ। वहां पता चला कि उसके ससुर बहुत बीमार हैं, शायद ही बचें। सुना तो वह भी दु:खी हो गई। बाबा से कहा तो उन्होंने सुना अनसुना कर दिया।
पन्ना का दिल नहीं माना। उसके ससुर के पास उनका बेटा नहीं रहा लेकिन वह तो है। आज अगर रामेश्वर होता तो क्या मजाल जो उसके बाप की यह हालत होती। उसका भी तो फर्ज है। अगर रामेश्वर नहीं है तो वह तो है। जो कुछ उसके पास है वह रामेश्वर के बदले ही तो है। तो फिर उसको क्या हक है कि जो रामेश्वर का है उसे इस तरह लुटाए और रामेश्वर के मां-बाप ऐसी जिंदगी गुजारें। जीवन भर अन्न-अन्न को तरसें। सभी तो स्वार्थी हैं। चाहे बाबा हों और चाहे दूसरे लोग जो उससे बंधना चाहते हैं।
'पन्ना तुम गलत कर रही हो। तुम किसी की अमानत हो। तुम जिम्मेदारी से भाग रही हो। तुम गुमराह हो चुकी हो। तुम चाहती हो कि रामेश्वर की आत्मा खुश रहे तो वापस लौट जाओ। वापस लौट जाओ............. वापस लौट जाओ।' उसकी अंतरात्मा ने कई बार उसे आवाज दी।
''मैं वापस जाऊंगी।'' वह जोर से चिल्लाई।
''क्या हुआ बेटी।'' बाबा जोर से बोले।
''मैं अब यहां बिल्कुल नहीं रूकूंगी। बाबा उनको मेरी जरूरत है। मैं रामेश्वर के मां-बाप के साथ विश्वासघात नहीं कर सकती। मैं जाऊंगी।''
''तुम पागल हो गई हो।''
''नहीं, पागल तो मैं पहले थी। अब ठीक हो गई हूँ। मैं आपकी कोई बात नहीं सूनूंगी। मैं तुरंत वापस जाऊंगी।'' पन्ना ने जोर देकर अपने बाबा से कहा।
बाबा भी समझ गए कि पन्ना अब नहीं मानेगी। उन्होंने हथियार डालना ही उचित समझा।
पन्ना ससुराल की ओर चल पड़ी। ज्योंही वह अपने घर में दाखिल हुई तो ससुर की हालत देखकर रो पड़ी। उसने अपने ससुर के चरण स्पर्श किए और बोली,
''बाबा, मैं लौट आई हूँ और अब कभी उधर नहीं जाऊंगी। मैं जिंदगीभर आपके साथ रहूंगी। आपका रामेश्वर बनूंगी। मैं आपके लिए अपने जीवन की तपस्या करूंगी। मैं शान से करगिल की विधवा कहलाऊंगी और शान से जिऊंगी।''
''अरे सुनती हो। अपनी पन्ना लौट आई है। मत देना मुझे वो कड़वी जहर जैसी दवाई। मैं ठीक हो गया हूँ। आओ देखो, मेरी बहू आ गई है। मेरी बेटी वापस आ गई है।'' वह खाट पर पड़ा-पड़ा कई बार बोलता रहा।
दो दिन बाद ही पूरे गांव में खबर फैल गई। 'बहू हो तो ऐसी। बहुत ही समझदार। अरे उसे तो लोगों ने बहका दिया। पन्ना तो हीरा है। असली करगिल के फौजी की पत्नी। गांव का नाम रोशन कर दिया।' सभी ने कहना शुरू कर दिया।
और ऐसा कहते हुए सभी गर्व से सीना फूलाते।
मेजर रतन जांगिड
सितम्बर 15,2007

1 comment:

Anonymous said...

superb sir ji....