Saturday, December 5, 2009

ऐशट्रे में ताजमहल

ऐशट्रे में ताजमहल
असहज हो जाता है वह इस ऐशट्रे को देखकर.... .
घर में अन्य सामानों की तरह यह ऐशट्रे भी है। कई सामान तो एक से ज्यादा हैं। मसलन टी वी घडियां, लाइटर,कलम, क़ुछ खराब तो कुछ सही हालत में, ऐशट्रे भी तो चार - पांच है नए- पुराने।
यह ऐशट्रे भी तो दस साल से साथ-साथ है। इन दस सालों में कितने घर बदले। कितने ठिकाने बदले न जाने कितने सामान टूट - फूट गए, कितना सामान इधर्रउधर हो गया, न जाने कितना कुछ कचरे में चला गया मगर यह ऐशट्रे वह हर बार सहेजकर लाता आया है।आदमी कुछ और सहेजे न सहेजे मगर अपने दर्द को जरूर सहेजता है....
संगमरमर का यह ऐशट्रे....
सफेद...झरने के झाग से भी ज्यादा...
धवल...हिमालय की चोटियों पर जमी बरफ से भी अधिक...
इसे शिवा ने उसके लिए आगरा में खरीदा था।हालांकि वह स्वयं उसे गिफ्ट नहीं कर पाया न जाने कितनी चीजें और भी तो उस दूकान में रही होंगी जहां से उसने इसे खरीदा था। वह कुछ और भी तो ले सकता था उसके लिए लेकिन वह जो कुछ भी लेता क्या वह उसे इस ऐशट्रे की तरह ही असहज नहीं करता...
संजना दीदी ने उसे ऐशट्रे देते हुए कहा था_ '' शिवा ने आपके लिए खरीदा था...'' उन्होंने डबडबाई आंखों और भरे गले की खण्डित आवाज में वह सबकुछ कहने की कोशिश की जो पिछले तीन वर्षों में उनपर और घर पर गुजरा था। बहुत कुछ वह जानता था, बहुत कुछ उसे नहीं मालूम था।
जो कुछ नहीं मालूम था उसे जानकर अवसाद और गहरा गया.... दिनभर वे शिवा की यादों को ही जीती रहीं थीं, उसने कहना भी चाहा कि जिन्दगी साथ जीनेवालों के साथ गुजरती है मगर कह नहीं पाया।कभी - कभी कुछ कहना कितना कठिन होता है...
रात की ट्रेन पकडनी थी...चलते समय संजना दीदी ने ही ऐशट्रे संभालकर उसके बैग में रख दिया उसे रखते वक्त भी उनकी आंखें गीली थीं...घर -परिवार और रिश्तेदारों में उसके अलावा कोई भी सिगरेट नहीं पीता। ऐशट्रे भी वह खुद ही खरीदता रहा है।लेकिन यह ऐशट्रे शिवा ने उसके लिए आगरा में खरीदा। क्या मोहब्बत की यादगार को संजोने के लिए आगरा का जुडा होना भावनात्मक मजबूरी है ।
साहिर लुधियानवी से कभी मिला होता तो पूछता कि मोहब्बत को उसने खानों में क्यों बांटा? मोहब्बत औरत की हो या बच्चे की...ग़रीब की या अमीर की...उसकी खुशबू...उसका रंग जुदा तो होता नहीं...
ट्रेन की रफ्तार 80 किलोमीटर प्रति घण्टा से कम नहीं थी आरक्षित बर्थ पर यह गति और उसके हिचकोले झूले की तरह झुला रहे थे उसे नींद आ जानी चाहिए थी सामान्यतया अब वह रात की यात्राओं में सो जाता है पहले की तरह उपन्यास नहीं पढता लेकिन उस रात नींद किसी उडनखटोले पर सवार हो कहीं दूर के लिए उड ग़ई...
वह उसकी शादी की रात थी । जयमाल के वक्त से ही छोटे - छोटे कई बच्चों ने उसे घेर रखा था कोई फूफाजी तो कोई मौसाजी कहते उसकी गोद में आने की कोशिश करता। उन्हीं में शिवा भी था यही कोई चार्रपांच वर्ष का रहा होगा । सौम्य, शांत, स्वस्थ, अवस्था से अधिक निकलता कद , बडी -बडी आंखें। अपनी ओर बांधने वाला व्यक्तित्व।यूं उस रात और अगले दिन की भीडभरी स्थितियों में हुई पहचान का नाता स्मृतियों में बहुत देर तक नहीं रह पाया था।शिवा से पहचान तो एक साल बाद ही बन सकी थी ।
वह बीवी के साथ उसकी बडी बहन संजना और उनके परिवार से मिलने गोरखपुर गया था।पत्रों से हुआ परिचय उन्हीं दो दिनों के साथ में प्रगाढ हुआ शिवा अपनी उसी कुदरती शालीनता के साथ मेरे करीब आता गया जो उसे कुदरती तौर पर मिली थी।अपनी अवस्था के बच्चों की तरह वह न तो जिद्दी था और न ही बनावटी। सुबह समय से उठकर नहाता अपने धुले कपडे पहनता। नाश्ता करता, खुद ही पॉलिश किए जूते पहनता और रात को ही तैयार किए स्कूल बैग के साथ टिफिन बॉक्स और वॉटर बॉटल लेकर स्कूल जाने के लिए रिक्शे पर बैठ जाता । संजना दीदी कहतीं, '' यह मेरा लडक़ा...पता नहीं कैसा है...इसने कभी शिकायत का कोई मौका नहीं दिया...घर हो...स्क़ूल हो...या पास- पडोस, कहीं तो कोई बदमाशी कभी करे...क़ोई तो इसकी शिकायत लाए तो इसे डांटू...नसीहत दूं...समझाऊं , ने हिस्से की डांट तो जैसे किसी और के हक में डाल दी है इसने.... अपनी दीदी रिंकी और छोटे भाई से भी कभी नहीं लडता...उनके बारे में कितना तो प्रोटेक्िटिव है...यह तो हम लोगों को समझाता है . ।''
शिवा के पापा कहते, '' बाजार में भी कभी अपने लिए कुछ खरीदने की जिद नहीं करता.... . . . . इसके लिए हम कुछ लेना भी चाहें तो रोकते हुए कहता है कि...है तो अपने पास...क्या फायदा इसतरह पैसे खर्च करने से...''
तो ऐसा था शिवा। हर साल अपनी कक्षा में प्रथम आता सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपनी पहचान बनाता। कप,ट्रॉफी और मेडल सार्लदर्रसाल घर में बढते जाते। खेलकूद में वह बहुत उत्साही नहीं था। शायद आने वाले वक्तों में वह इस ओर भी अपने कदम बढाता। मगर चाल शायद उसके कदमों का साथ छोडने की उधेडबुन में लग गई थी...
उससे पूछता '' मौसाजी आप तो हवाई जहाज से जाते हैं आपको डर नहीं लगता .?''
''डर तो लगता है लेकिन डर के साथ कबतक जिएंगे...और भी तो सहयात्री होते हैं...''
उसके चेहरे पर संतोष झलका कि जैसे खतरों के साथ गुजरना ही उनका सामना करना है एकबार उसने उत्सुकता से पूछा था '' मौसाजी हवाई जहाज में बाथरूम जाना पडे तो...?''
''जाते हैं...''
'' ऊपर से किसी पर गिरे तो वह समझेगा कि बिन बादल बरसात...''
वह मुस्कराया था उसने समझाया कि हवाई जहाज में कैसी व्यवस्था होती है।इन्ही उत्सुकताओं में बडा होते हुए वह छठवीं कक्षा में पहुंच गया था कि उसकी और परिवार की सारी उत्सुकताओं पर प्रश्नचिन्ह के बदले विराम लग गया....ज़ैसे कि सभी जान गए हों कि भविष्य क्या है।उसके एक पांव में गिल्टी निकल आई , बायॅप्सी और अन्य कई जांचों ने मुहर लगा दी कि उसे बोन कैंसर है। ज़िन्दगी हर हाल में तीन साल...
जो कहर टूटा उसमें सभी टूट गए _ दवा - दारू और दुआ अपनी उखमज जोतकर ठहर से गए शिवा की एक टांग भी काटनी पडी, इसके बावजूद भी उसने कोई विद्रोह प्रकट नहीं किया। आठवीं कक्षा में पढने वाला शिवा बगैर किसी से पूछे अपनी बीमारी का अंजाम जानता था_ उसने अपने पापा से सिर्फ एक इच्छा व्यक्त की '' मुझे हिन्दुस्तान घुमा दें...''
एक, बस एक पत्र उसे लिखा_ '' मौसाजी, एक पैर से दूर तक चल पाना मेरे लिए मुश्किल हो गया है...लेकिन दुनिया को वहां तक देखना चाहता हूं जहां तक मेरी नजर जा सके.... . . . मैंने आपसे कभी कुछ नहीं मांगा...लोग तो विदेश से कितनी चीजें मंगवाते हैं...आप मुझे एक बायनाकुलर भेज दें...''
उसके संक्षिप्त पत्र की लिखी इबारत के आगे अनलिखे को पढने और समझने की ताकत क्या सबके पास होती है...
उसने उसे एक बायनाकुलर भेज दिया। शिवा की यात्रा शुरू हो चुकी थी। वह कभी गोवा होता तो कभी जयपुर,इलाज चलता रहता।तबियत सुधरती और बिगडती रहती मगर उसकी यात्रा निर्विघ्न चलती रही उसकी इच्छा पूरी करते हुए मां - बाप उसकी उस शिकायत को दूर कर रहे थे जिसमें उसने कभी शिकायत हीर् दज़ नहीं कराई थी...
आगरा में ताजमहल के बाहर लगी दूकानों में से किसी एक से उसने ऐशट्रे खरीदा था। शिवा को उसकी सिगरेट ही क्यों याद रही ? उसने पूछा था एक बार ''मौसाजी आप सिगरेट क्यों पीते हैं ?''
''आदत हो गई है...''
''आदत छोडना मुश्किल है न मौसाजी .?''
''हां बेटे...''
उस रात ट्रेन का सफर भारी हो गया था । सारी रात नींद गायब थी और आज जब वह ऐशट्रे को देखकर पहले कई बार की तरह असहज हुआ है तो शिवा को गुजरे दस साल हो गए हैं। मगर शिवा गया कहां है, दिलों में जगह बनानेवाले कहीं नहीं जाते,इस ऐशट्रे में उसने कभी सिगरेट की राख नहीं डाली। इसमें कभी सिगरेट नहीं बुझाई ।ऐशट्रे में ताजमहल दे गया है शिवा...
कृष्ण बिहारी
जुलाई 1, 2005

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