Saturday, December 19, 2009

टिटहरी

टिटहरी
अब भी गर्म था कमरा गरर्मागरम बहस, तकरार और रोष से। मेरे कान दहक रहे थे उन जली-कटी बातों से जो अनिरूध्द अभी-अभी सुना कर उधर मुँह करके पडा था। जबान तुर्श थी अब भी, उन गालियों से जो मैंने जी भर कर अनिरूध्द को दी थीं।
'' बस्स ! बहुत हो गया अब यहाँ नहीं रहना । ''
आखिरी तुरूप बची थी वह भी फेंक आनन-फानन में बैग जमाने लगी। अनिरूध्द रजाई ओढे अचल पडा था, उस पर इस धमकी का कोई असर न होता जान खीज हो रही थी। मन कर रहा था सच ही चली जाँऊ , वैसे भी किसे रह गई है मेरी जरूरत! क्या हुआ जो कर लिया डांस उस बैचलर के साथ। सभी तो करते हैं। अगर कोई डांस के लिये इनवाईट करे तो कोई कैसे मना कर दे? भूल गया शादी के एकदम बाद वह एबरप्टली ना कर देती थी तो वह खुद घर जाकर डांटा करता था कि ऐसा क्यों करती हो लोग क्या सोचेंगे कि मैं ही मीन हूँ। और अब शादी के दस साल बाद पजेसिव हो रहे हैं। हाईट ऑफ हिप्पोक्रेसी। हर बार किसी ट्रेनिंग, टूर पर एकाध महिला मित्र बना बैठते हैं और आकर कहेंगे, बस जरा सी जान पहचान थी।

क्या इसी आदमी के लिये वह अपना ब्राईट कैरियर छोड क़र हाउर्सवाईफ बनी बैठी है! और अब ये सोचता है कि वह बस एक घरेलू औरत के सिवा कुछ नहीं! अब भी एक आग जिन्दा है भीतर। कल ही चली जाँऊगी, इसे सिध्द करके दिखा दूँगी कि अब भी अपने पैरों पर खडी हो सकती हूँ। आखिर इसकी हिम्मत कैसे हुई निम्फ कहने की। और खुद जो एक सबसे बडा फ्लर्ट है सो!

उफ! इतना घनीभूत तनाव कि पिघल कर बह जाता तो राहत मिलती। पर क्यों रोए वह, नहीं रोना तो है ही नहीं, क्यों कमजोर हो रोकर उसके सामने। बस्स कल सुबह ही निकल जाना है। सँभाले बच्चे, बहुत पाल लिये उसने। मुफ्त की कुक, आया और जो मिल गई है न, बस शोषण करो।

पर जाएगी कहाँ? माँ के घर तो नहीं, उन्हें उम्र के इस पडाव पर क्यों कष्ट देना। मुम्बई ठीक है,अपर्णा के पास, उसकी बचपन की सखि, उसपर स्पिन्स्टर है। और अच्छी नौकरी करती है। वह भीढूंढ लेगी कोई ठीक सी नौकरी अपना खर्च चलाने लायक। ये तो कह ही चुका है कि जा चली जा मेरी बला से। थैंक गॉड! मम्मी के राखी पर भेजे पाँच हजार रूपये रखे हैं ।

सब कहें तो कहें एक और असफल प्रेम विवाह । प्रेम-व्रेम कुछ नहीं होता, दैहिक जरूरतें खींच लाती हैं पास। अब जब सब आकर्षण चुक गये तो साथ रहने का फायदा?

देखा! ईडियट इतना लड-झगड क़र मजे से खर्राटे ले रहा है।

सुबह पडोसन नीना जरूर इठला कर पूछेगी, रात क्या गेस्ट आए थे ? बडी तेज-तेज आवाजें आरहीं थीं। उससे पहले ही चली जाँऊगी, देता फिरेगा सबको जवाब ये अनिरूध्द का बच्चा!

पर हाय! बच्चों ने पूछा तब? कह देगा मर गई तुम्हारी मूर्ख मम्मी ।

बहुत देर का जमा तनाव बच्चों के नाम पर तरल हो उठा, पर दिमाग था कि शान्त होने का नाम नहीं ले रहा था। मन कर रहा था कि झिंझोड क़र उठा दे खर्राटे लेते इस निष्ठुर व्यक्ति को और चीख कर कहे कि वह जा रही है हमेशा के लिए। नहीं, चुपचाप जाने का ज्यादा तीखा असर होगा।

शरद की उस रात में अपमान, रोष से मेरा मन जल रहा था कि तभी सन्नाटे को सिहराती भयभीत टिटहरी के जोडे क़ी आवाज गूँजी। उस आवाज में जो डर था वह विद्युत की तरह रक्त में उतर धरती में समा गया। क्या हुआ होगा? खुले आसमान के नीचे एक झाडी क़े पीछे, कुछ छोटे गोल पत्थरों पर घास जमा कर नीड बनाया होगा। ना जाने अण्डे होंगे या बच्चे! विषधर रेंग कर बढता होगा या कोई अन्य जानवर! दोनों जन जुटे होंगे प्राणपण से अपने बच्चों को बचाने में। कभी सुना था कि टिटहरी का जोडा मिलकर बच्चे पालता है। एक अण्डे सेता है दूसरा दूर बैठा रखवाली करता है,खतरा होने पर वह चीख कर आगाह करता है। मन कैसा-कैसा हो आया। एक ये जोडा है टिटहरी का रात-रात जाग, खतरों से जूझ कर अपनी आने वाली पीढी क़ो बचाने में लगा है। हाय! क्या करने जा रही थी वह? जरा सी बात पर नीड छोड चली जा रही थी?

कितने छोटे तो हैं उसके बच्चे भी तो। अभी तो ठीक से खुद नहा भी कहाँ पाते हैं। अनिरूध्द कितना करेंगे इस थका देने वाली नौकरी के साथ। उसके पास शान्त सुरक्षित घर है। बेचारी टिटहरी! उसके पास जीवन-साथी से मतभेद का समय ही कहाँ? असहमतियाँ किससे? उससे, जो दिन-रात उसके साथ संघर्षरत है जीवन आगे बढाने में। सुख-सुविधाओं में ही लडाई-झगडा सूझता है। एक वह भी तो वक्त था जब निमिष चार साल का था और उन्हें पता चला था कि उसके हार्ट में एक होल है, तब वो दोनों नन्हें निमिष को लेकर मद्रास भागे थे। अस्पताल में दिन-रात जागते निमिष को सँभालते दोनों कितना करीब आगए थे। झगडा तो दूर, जरा सी असहमति तक नहीं हुई थी। आर्थिक, शारीरिक, मानसिक सारे कष्ट साथ-साथ झेले।

आज भी कहाँ गलत थे अनिरूध्द, उस बैचलर की तो इमेज ही खराब है जिसके साथ वह सहज ही डान्स करने को उठ गई थी। वह बेवजह ही कान पर झुक-झुक बातें कर रहा था डान्स करते-करते और वह भी खिलखिला कर हँस पडी थी उस पूअर जोक पर। वरना अनिरूध्द इतने भी मीन नहीं। उसके स्कूल-कॉलेज के दोस्तों से उदारता से मिलता आया है। उसने सहजता ही से तो कहा था कि मुझे उस बैचलर के साथ डान्स नहीं करना चाहिये था। वही चिल्ला पडी थी।
'' तुम तो बार से चिपके रहते हो, तुम्हें ना सही मुझे तो शौक है डान्स का। इतनी जलन हो रही थी तो आ जाते डान्स फ्लोर पर। ''
हाय! कहाँ कमी है, इतना अच्छा अण्डरस्टैण्डिंग पति किसका होगा। बराबर से घर-बाहर सँभालते हैं। बीमार होने पर किचन में घुसने तक नहीं देते।
'' अनिरूध्द। अनिरूध्द सो गए क्या ? ''
'' हँ.... अरे तुम सोई नहीं अब तक ? '' नाराज हो अब भी
'' तुमने इतने खराब शब्द जो बोले... ''
'' माफ कर दो। दरअसल तुम्हारी रूखी प्रतिक्रिया पर भडक़ गया था। मैं गलत था। सॉरी डियर । आओ पास आकर सो जाओ। ''
'' अनिरूध्द ! ''
'' गीति.. ''
सुबह का आसमान रोने के बाद मुँह धोकर मुस्कुराने वाली साँवलीलडक़ी जैसा लग रहा था। वह गुनगुनाते हुए बच्चों का टिफिन बनाने लगी।



- मनीषा कुलश्रेष्ठ
जनवरी 1, 2001

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