Saturday, December 19, 2009

तिमार श्जोफी क़ा वैधव्य

अनूदित हंगेरियन कहानी
तिमार श्जोफी क़ा वैधव्य
यह छोटी छोटी सी प्यारी सी नाचीज औरतें, यह सुनहरे बालों वाली औरतें इतनी नाजुक़ और अच्छी हैं, जैसे बेजबान मेमने। कम से कम यह तिमार श्जोफी तो बिलकुल उसी तरह की है। जबसे इसकी शादी हुई है तब से सिर्फ इसकी मुस्कुराहट ही दिखती थी। पहले की खुशी भरी मुस्कान अब दर्द भरी मुस्कान में बदल गई है। न किसी को इसकी खुशी से कोई फर्क पडता था और न दु:ख से। ना इसने कभी खुशी जाहिर की थी और न अब किसी से शिकायत करती है। मगर उसका सफेद चेहरा,वह हमेशा चमकता चेहरा, रोज हरेक को वो बात बताता है जो यूं भी सब जानते हैं।
यहां छोड ग़या इसका पति इसे, बेरहमी से। हालांकि, बहादुर जवान था। सबसे ज्यादा काम करने वाला, सबसे ज्यादा मेहनती बढई, अपने पूरे क्षेत्र में। कौन सपने में भी सोच सकता था कि वह अपनी इतनी देवी जैसी पत्नी से बेवफाई करेगा और उस दूसरी औरत की फरेबी आंखों के कालेपन से अपनी आत्मा कलुषित कर नर्क में झोंकने चला जायेगा। कोई खबर तक किसी ने न सुनी कि कहां गये दोनों। रास्ते की धूल जिसमें उनके पैरों के निशान बने थे, कुछ न बोली, हवा ने भी राज न खोला कि वे कहां हैं। सरसराते पत्तों की बात भी समझ में आने वाली नहीं थी। हालांकि, शायद वो उनका पता ही बता रहे थे। काश! गांव से जाते वक्त कुछ बोल कर ही जाता तो इस सुनहरे बालों वाली औरत का दु:ख इतना गहरा न होता। इस औरत का जिसे लोग अब ' परित्यक्ता कह कर बुलाते थे। काश! बांहों में भरकर एक बार प्यार से, चाहे वह ऊपरी ही सही, चाहे रौब से ही, सिर्फ इतना ही कह दिया होता, '' तू अब मुझे दोबारा नहीं देखेगी, दूसरी को चाहता हूँ, अब मेरी जिन्दगी उसके लिये है। मगर नहीं, वे दोनों चुपचाप ही चले गये, आपस में एक दूसरे से ही बातें करते हुए।चले गये और अब कभी वापस नहीं आएंगे। अब एक साल बीत गया है पूरा एक साल।
आएगा, वह जरूर वापस आएगा। पीटर बुरा आदमी नहीं है। उसका दिल हमेशा से अच्छा था, यूं पूरी तरह थोडे ही बिगड सकता है। हो सकता है, उस औरत ने उसकी बुध्दि हर ली हो, या खुद को उसके दिल में जबरदस्ती बिठा लिया हो, लेकिन यह सब एक नकली पेन्टिंग की तरह समय के साथ धुंधला पड ज़ाएगा, फीका पड ज़ाएगा और वह फिर से वापस आएगा।
तिमार श्जोफी उम्मीद करती रहती थी। जब सिलाई के समय कैंची उसके हाथ से छूट कर गिर पडती तो वह कामना करती कि काश, यह जमीन पर सीधी खडी हो जाये (यह एक शुभ संकेत माना जाता है हंगरी में) या जब किसी कौए के पंख खिडक़ी से दिखाई देते तब भी वह लम्बी सांस लेकर कामना करती कि काश, वह उसके ही आंगन में बोले। मगर न कैंची झूठा दिलासा देती न कौआ ही किसी के आने की खबर लाता।
हर शाम घर डयोढी पर आकर बैठ जाती थी, जहां से सांप की तरह बल खाती सडक़ दूर तक नजर आती थी, वहां तक जहां क्षितिज दिखाई देने लगता था। अपने जर्द पडे चेहरे पर हाथ का साया कर ताकती रहती थी, उस दृश्य को, जिसमें एक एक करके उभरते आते थे तरह तरह के गाडीवान, खरीद फरोख्त के लिये चलते यात्री, यूं ही डोलते लोग और भगवान जाने कौन कौन। गांव वाले कई दफा उसके करीब से गुजर जाते, उसे सलाम भी करते पर उसकी नजर किसी पर न पडती।
'श्जोफी अपने पति का इंतजार कर रही है। एक दूसरे से फुसफुसा कर कहते और उसका मजाक भी उडाते।'
मगर साहब, श्ज़ोफी ही सच्ची थी। उसका दिल ही सच को जानता था। दुनिया के सब ज्ञानी लोगों से ज्यादा समझता था।
एक सुबह जब तंबाकू के पौधों पर पानी छिडक़ रही थी( यह सोचते हुए कि यदि इस समय उसका पति आ जाता तो सर्दी में उसे ताजा तंबाकू पीने को देती।) तो एक बूढी औरत ने, जिसके मुंह पर चेचक के दाग थे, आंगन में कदम रखा। वह संदेशा लेकर आई थी।
'' मैं तुम्हारे पति पास से आ रही हूँ। उसने कहलवाया है कि वह अपने किये पर शर्मिन्दा है, उसे माफ कर दो। यहां से तीसरे गांव गैजोन में काम करता है। उसमें स्वयं आने की हिम्मत नहीं थी,डरता था कि तुम बहुत गुस्सा करोगी। अगर तुमने उसे माफ कर दिया हो तो उसकी इच्छा है कि तुम उसके पास पहुंच जाओ।''
'' चलो चलें।'' सुनहरे बालों वाली भोली श्जोफी बोली। अपना काला दुपट्टा उतार फेंका और तेल के धब्बों वाला अपना लाल दुपट्टा ओढ लिया, रास्ते के लिये। पीटर को पसन्द है यह रंग और यूं भी आज के शुभ दिन के लिये उपयुक्त भी है। उधर गजाैन में एक सोने का क्रॉस मीनार की चोटी पर लगाना था। ऑफिसर की पत्नी ने जुडवां बच्चों को जन्म दिया था। इसी खुशी में यह क्रॉस भेंट में चढाया था।
'' यह काम कौन करेगा लडक़ों?'' रअगी मिहाय जो प्रमुख बढई थे, उन्होने आवाज लगाई।
'' मैं। '' पीटर बोला, '' मैं जाऊंगा ऊपर साहब।''
'' मेरे ख्याल से बैलिन्दैक शौमू ठीक रहेगा। तू थोडा भारी है।''
'' अरे साहब, आज से ज्यादा हल्का तो मैं ने अपने को कभी महसूस ही नहीं किया।''
'' हाँ, यह तो समझ सकता हूँ। अपने गले में लटके बोझ से अपने को आजाद जो कर लिया है। बस यूं ही निकाल फेंका ना! काफी खूबसूरत लडक़ी लाया था, है न शौमू?''
'' साहब, मुझे उससे नफरत हो गयी थी। सच है, जो एक की नहीं, वह किसी की नहीं। जो एक बार लुढक़ी वह बस लुढक़ने की आदी हो गई समझो।''
'' तेरे हाथ से फिसल गई क्या? शौमू सुना! हा हा हा! अरे बदमाश! अच्छा चल तू ही लगा क्रॉस।''
पीटर ने शौमू की तरफ विजय भरी मगर शांत नजर डाली।
'' जी हाँ रअगी साहब! आज शौमू को रहने ही दीजिये। मैं दरअसल आज किसी के कहीं से आने का इंतजार कर रहा हूँ। मेरा दिल धडक़ रहा है कि आएगी या नहीं। इसलिये भी मैं मीनार की चोटी पर जाना चाहता हूँ, ताकि अपने गांव से आने वाली सडक़ पर दूर दूर तक देख सकूं।''
'' ठीक है, मुझे इससे क्या फर्क पडता है। चल अब जल्दी से चढ ज़ा। सबसे ऊपर की खिडक़ी से तुझे क्रॉस पकडा दूंगा, जब तू ऊपर पहुंच जाएगा।''
और जल्दी ही पीटर ऊपर जा चढा, कमाल की फुर्ती से लकडी क़े फट्टों पर पैर जमाते हुए।
नीचे झूलते हुए आवाज लगाई, '' लाईए, पकडाईए क्रॉस, ताकि ऊपर लगा सकूं।''
'' यह रहा बेटा।''
पीटर और ऊपर चढा और जब बिलकुल सही जगह पर पहुंच गया, तब उसकी नजर अपने गांव से आने वाली सडक़ पर पडी। वह आ रही है। हाँ, श्जोफी ही है बूढी औरत के साथ। कूदते हुए कदमों से अभी मुडी है गांव की ओर उसका दिल जोर ज़ोर से धडक़ने लगा। किसी चीज क़ो कस के पकडा,हाथ कांपे और आंखें डबडबा गईं।
'' पीटर, लगा दिया क्रॉस? ''
'' कौनसी चोटी पर लगाना है? '' लडख़डाती आवाज में पीटर बोला।
बूढे बढई का रंग फीका पड ग़या। खिडक़ी में दुआ करते हुए उसने अपने ऊपर क्रॉस बनाया और दु:खी होकर दबी सी आवाज में बोला, '' किसी पर भी लगा दे।''
लेकिन वह जानता था मीनार पर एक ही चोटी थी। उस चक्कर खाते पीटर को दो तीन दिखाई दे रही थीं। बूढा समझ गया, अब क्या होने वाला है। अपने होश खोता, बदहवास नीचे भागा, सोचते हुए कि अब पीटर शीघ्र ही धरती पर होगा। बहुत दूर, इस दुनिया से भी परे।
मीनार के नीचे पति पत्नी दोनों एक साथ पहुंचे। पर एक मृत अवस्था में। इस मिलन के लिये तो काला दुपट्टा ही सही रहता। श्जोफी गूंगी होकर मृत शरीर से लिपट गई। लिपटा कर उसे देर तक चूमती रही, चिपकाये रही। जब लोगों ने बडी ताकत लगा कर उसे पति की देह से अलग किया तब भी उसका चेहरा शांत था, पहले की तरह। न शब्द थे होंठों पर, न आंखों में आंसू। पीछे मुडी आखिरी बार देखने के लिये और निढाल होकर गिर पडी। फ़िर उठी, भरपूर ताकत से उस बूढी औरत का कंधा पकड लिया, लटके हुए चेहरे से बहुत धीमी आवाज में पूछने लगी,
'' मुझे यहां किसलिये लायी थीं? अब मैं यहां से आगे कैसे इंतजार करुंगी?''
और बस आसूं यूं बह निकले, मानो एक मुक्त झरना!
- लेखक : कालमान मिकसात
अनुवाद: इन्दु मजलदान
मई 15, 2002

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