Saturday, December 19, 2009

खो जाते हैं घर

खो जाते हैं घर
बब्बू क्लीनिक से रिलीव हो गया है मिसेज राय उसे अपने साथ ले जा रही हैं।उन्होंने क्लीनिक का पूरा पेमेन्ट कर दिया है।
'' ओके डॉक्टर तो फिर मैं इसे ले जा रही हूं। कोई भी बात होगी तो मैं आपको फोन पर बता दूंगी। वे चलते समय डॉक्टर की अनुमति लेती हैं। डॉक्टर ने उन्हें निश्चिंत किया है -'' ठीक है मैडम, आप इसे दवाएं देती रहें। कुछ ही दिनों में बिलकुल ठीक हो जायेगा। ओके बब्बू, बाय। आंटी को परेशान नहीं करना।
बब्बू ने कमजोर आवाज में कहा है - नहीं करुंगा।
डॉक्टर ने बब्बू का गाल सहला कर उसे गुड बाय कहा है।
वे एक बार फिर डॉक्टर को याद दिला रही हैं - '' अगर वो आदमी आए इस बच्चे के बारे में पूछने तो मुझे तुरंत खबर करें। प्लीज।
ड़ॉक्टर ने उन्हें आश्वस्त किया है - '' श्योर, श्योर, हालांकि अब इतने दिन बीत जाने के बाद उसके आने की उम्मीद कम ही है,लेकिन जैसे ही वो आया, मैं आपको तुरन्त खबर कर दूंगा। मुझे अभी भी यही लग रहा है कि उसने इस बच्चे को कहीं बुखार में तडपते देख लिया होगा और खुद इलाज कराने की हैसियत नहीं रही होगी इसलिये इसे यहां छोड ग़या।
'' मुझे भी कुछ ऐसा ही लगता है। उसका अपना बच्चा होता तो कैसे भी करके एक बार तो जरूर ही मिलने आता ही। लेकिन बीच - बीच में ये दूसरे बच्चों की कहानियां सुनाता रहा है, उससे मामला और उलझ गया है। मिसेज राय ने अपनी आशंका व्यक्त की है।
'' मेरे ख्याल से बच्चे के पूरी तरह से ठीक हो जाने के बाद ही सारी बातों के बारे में बेहतर ढंग से पता चल सकेगा।''
'' हां, मेरा भी यही ख्याल है कि बच्चा अभी भी सारी बातें सिलसिलेवार नहीं बता पा रहा है। कुछ दिन तो इंतजार करना ही पडेग़ा।''
मिसेज राय ने ड्राइवर से सारा सामान उठाने के लिये कहा है और वार्ड बॉय को इशारा किया है बच्चे को कार में बिठा देने के लिये।बब्बू को कार में बिठा देने के बाद वे खुद कार में आयी हैं।
बब्बू जिन्दगी में पहली बार किसी कार में बैठा है और हैरानी से सारी चीजें देख रहा है। बहुत ज्यादा आरामदायक सीटें, ठंडी - ठंडी हवा, बहुत हौले - हौले बजता संगीत और पानी पर चलती सी कार। वह शीशे से आंख सटा कर बाहर का नजारा देखना चाहता है।मिसेज राय उसे आराम से बिठा कर खिडक़ी के नजदीक सरका देती हैं। वह अचानक कार में से अनुपस्थित हो गया है और बाहर भागती - दौडती दुनिया में शामिल हो गया है। मिसेज राय उसके सिर पर हौले हौले उंगलियां फिरा रही हैं। वे अपनी तरफ से कुछ कह कर या पूछ कर बच्चे और उसकी दुनिया में बाधक नहीं बनना चाहतीं। उन्हें कोई जल्दी नहीं है। बब्बू थोडी ही देर के लिये कार के भीतर की दुनिया में लौटता है और उनसे आंखें मिलाता है। वे मुस्कुराती हैं। बब्बू भी उनकी मुस्कुराहट के बदले अपने चेहरे पर कीमती मुस्कुराहट लाने की कोशिश करता है।
वे उसका गाल सहलाते हुए पूछती हैं - '' बेटे, अब कैसा लग रहा है? ''
वह हौले से कहता है -'' ठीक।''
बदले में वह उनसे पूछता ही - '' हम कहां जा रहे हैं।''
'' घर, क्यों?''
'' किसके घर?''
'' अपने घर और किसके घर?''
'' आपका घर कहां है?''
'' लोखंडवाला में।''
बब्बू चुप हो गया है। उसे सूझ नहीं रहा कि बात को आगे कैसे बढाए। कभी किसी से उसने इतनी और इस तरह की बातें की ही नहीं हैं। कुछ सोच कर आप ही कहने लगता है - '' मेरा घर तो बहुत दूर है।''
'' कहां है तुम्हारा घर मेरे बच्चे? '' उन्हें उम्मीद की कुछ किरणें नजर आई हैं।
'' पता नहीं।'' बच्चे ने एक बार फिर उन्हें मझधार में छोड दिया है।
'' अच्छा वह आदमी कौन था जो तुम्हें अस्पताल छोड ग़या था?''
'' मुझे नहीं पता।''
'' अच्छा, इतना तो पता होगा कि तुम कहां रहते थे और किसके साथ रहते थे।''
'' दोस्तों के साथ।''
'' कहां?''
'' पुल के नीचे।''
'' जगह याद है?''
'' नहीं।''
'' कोई खास बात याद है उस पुल के बारे में?''
'' उधर मच्छर बहुत थे। रात भर काटते रहते थे।''
'' बम्बई आये कितने दिन हुए होंगे तुम्हें?''
'' पता नहीं।''
'' खाना कहां खाते थे।''
'' कहीं भी खा लेते थे।''
'' तुम्हारे वो दोस्त कहां मिल गये थे तुम्हें, जिन्हें तुम रोज याद करते थे।''
'' वहीं पुल के नीचे।''
'' क्या करते थे वो लोग?''
'' सब अलग - अलग काम करते थे।''
'' तो तुम्हारा क्याल कौन रखता था?''
'' सभी रखते थे।''
'' खाना - पीना? ''
'' सब मिल कर खाते थे।''
'' तो तुम क्या करते थे?''
'' कुछ नहीं, मैं तो बहुत छोटा हूं ना।''
'' लेकिन हो उस्ताद। छोटू उस्ताद!''
'' मैं उस्ताद थोडी हूं।''
'' अच्छा, अपने घर की याद है तुम्हैं?''
'' कौन कौन हैं तुम्हारे घर में?''
'' बाबू, अम्मा, दीदी भाई।''
'' तुम बम्बई में कैसे आ गये?''
'' ट्रेन में।''
'' कब की बात है?''
'' पता नहीं।''
'' तुम लोग बम्बई क्या करने आ रहे थे?''
'' शादी में।''
'' और कौन थे साथ में?''
'' सब थे।''
'' तो तुम उनसे अलग कैसे हो गये?''
'' पता नहीं।''
'' तुम्हारे मां बाप तुम्हें ट्रेन में छोड ग़ए क्या?''
'' मुझे क्या पता।''
'' तुम कितने भाई बहन हो?''
'' चार।''
'' अच्छा । तो तुम्हें बिलकुल याद नहीं है कि कहां पर है तुम्हारा घर?''
'' बहुत दूर।''
'' लेकिन कहां?''
'' गांव में।''
'' गांव का नाम याद है?''
'' और स्कूल का?''
'' आदर्श स्कूल।''
'' और पिता जी का नाम?''
'' बाबू।''
'' और मां का?''
'' पता नहीं।''
''बाबू क्या करते हैं?''
'' दुकान है।''
'' तुम्हें तो बेटे कुछ भी अच्छी तरह याद नहीं या पता नहीं। ऐसे में अपने घर कैसे जाओगे?''
'' पता नहीं।''
'' अपने बाबू अम्मा से कैसे मिलोगे?''
'' पता नहीं।''
बब्बू इतने सारे सवालों से थक गया है। और फिर उसे अपने घर की भी याद आने लगी है। उसने अपनी आंखें मूंद लीं हैं। मिसेज राय भी समझ रही हैं कि उससे इतने सवाल एक साथ नहीं पूछने चाहिये थे। वे उसे चुप ही रहने देती हैं।
अचानक बब्बू ने आंखें खोली हैं - ''आंटी आप क्या करती हैं?''
'' क्यों बेटे?''


'' वैसे ही पूछा, आपकी गाडी बहुत अच्छी है। ठण्डी - ठण्डी।
'' तुम्हें अच्छी लगी?''
'' हां आप भी।''
'' अरे बाप रे, हम भी तुम्हें अच्छे लगे, भला क्यूं?''
'' आप रोज आती थी हमसे मिलने। इत्ती सारी चीजें लाती थीं और मारती भी नहीं थी।''
'' मैं क्यूं मारने लगी तुम्हें, मेरे बच्चे? तुम तो इतने प्यारे, इतने अच्छे बच्चे हो, भला कोई तुम्हें क्यों मारने लगा?''
'' बाबू नहीं मारते थे। अम्मा मारती थी, दीदी - भईया मारते थे।''
'' बहुत खराब थे वो लोग। तुम्हें तो कोई मार ही नहीं सकता।''
तभी उन्होंने ड्रायवर से कहा है - ड्रायवर, जरा सामने रेडीमेड कपडों की दुकान के आगे गाडी तो रोकना। अपने राजा बाबू के लिये कुछ कपडे तो लें लें।''
'' मैं क्या करुंगा कपडे लेकर?'' बब्बू ने अपना जिक़्र सुन कर पूछा है।
'' क्यों कपडों का क्या करते हैं?''
'' पहनते हैं। मैं ने भी तो पहने हुए हैं।''
'' तुम इतने दिन अस्पताल में थे ना, अब घर जा रहे हो इसलिये अच्छे कपडे तो चाहिये ही ना। और खिलौने भी। बोलो कौन सा खिलौना पसन्द है?''
'' हम घर पर खिालौनों से तो थोडे ही खेलते थे।''
'' तो किस चीज से खेलते थे मेरे बच्चे?''
'' वैसे ही खेलते रहते थे।''
'' बहुत भोले हो तुम बेटे, बच्चों को तो खिलौनों से खेलना ही चाहिये। है ना?''
गाडी एक स्टोर के सामने रुकी है। मिसेज राय बच्चे का ड्रायवर के साथ वहीं कार में छोड क़र भीतर जाकर बच्चे के लिये ढेर सारे कपडे और खिलौने लेकर आई हैं।
कार में आते ही उन्होंने ड्रायवर से कहा है - अब सीधे घर चलें। हमारे बेटे को भी आराम करना चाहिये। है ना मुन्ना?'' वे उसकी तरफ देख कर पूछती हैं। वह सिर हिलाता है।
गाडी लोखंडवाला कॉम्पलेक्स में एक बहुत ही बडी और भव्य इमारत के आगे रुकती है। वे बच्चे को आराम से नीचे उतारती हैं। दोनों लिफ्ट तक आते हैं। बच्चा हैरानी से सारी भव्यता देख रहा है। उसके लिये ये दुनिया बिलकुल अनजानी और अनदेखी है। लिफ्ट आने पर दोनों भीतर आए हैं। बच्चा लिफ्ट में पहली बार आ रहा है और हैरानी से पूछता है - '' आंटी, ये कमरा क्या है?''
'' बच्चे, ये कमरा नहीं लिफ्ट है। इससे ऊपर जाते हैं।''
'' अच्छा ये लिफ्ट है। टी वी पर एक बार पिक्चर में देखी थी।''
वे अपनी मंजिल पर पहुंच गये हैं। वे एक दरवाजे की घंटी बजाते हैं। दरवाजा बाई ने खोला है। वे उसे लेकर भीतर गई हैं। नौकरानी ने उसके हाथ से सामान ले लिया है और बच्चे को देख कर कहती है - '' हाय, किती छान मुलगा आहे! किसका है मेमसाहब? ''
वे गर्व से बताती हैं - '' हमारा मेहमान है। अभी हमारे साथ ही रहेगा और सुनो, ये बाबा बीमार है। इसके लिये हल्का खाना बनाना।पूरा ख्याल रखना इसका। ठीक।''
'' ठीक है मेमसाहब। उसके हाथ बच्चे के गाल सहलाने के लिये मचलते हैं लेकिन वह खुद पर कन्ट्रोल करती है। बहुत मौके आएंगे इसके। वह चुपचाप भीतर सामान रखने चली गयी है।
अपने कमरे में जाते ही उन्होंने बच्चे को भींचकर सीने से लगा लिया है। वे जोर जोर से रोने जा रही हैं। वे उसे भींचे भींचे - मेरे लाल, मेरे लाल कहे जा रही हैं। उन्हें रोते देख बच्चा घबरा गया है और वह भी रोने लगा है।
'' आंटी आप रो क्यों रही हो ?''
'' अरे पागल, मैं रो कहां रही हूं ये तोये तो खुशी के आंसू हैं।''
'' आंटी खुशी के आंसू हैं कैसे होते हैं?''
'' बहुत सवाल करता है रे। आदमी जब बहुत खुश होता है ना, तब भी रोता है।''
'' मैं तो जब भी रोता हूं तो खुशी के आंसू थोडे ही आते हैं। जब गिर जाता हूं या भूख लगती है तो मैं तो सचमुच रोता हूं।आंटी आपको चोट लगती है तो आप रोती हैं क्या?''
'' पगले बडों को जब चोट लगती है ना तो वो चोट नजर नहीं आती। बस, पता लग जाता है कि चोट लग गयी है। समझे बुध्दूराम!''
'' नहीं।''
'' तू नहीं समझेगा, मेरे लाल। आ मैं तुझे समझाती हूं।''
उसे लेकर एक तस्वीर के सामने ले जाती हैं, लगभग पांच साल के एक गदबदे बच्चे की तस्वीर है। मुस्कुराते हुए बच्चे की तसवीर।
'' आंटी, ये किसकी तस्वीर है?''
'' ये मेरे पोते की तस्वीर है।''
'' पोता क्या होता है?''
'' अरे बाप रे, कैसे बताऊं कि पोता क्या होता है? अच्छा देखा। तू बेटा तो समझता है ना। जैसे तू अपने बाबू का बेटा है।''
'' हां।''
'' तो जो तेरा बेटा होगा न वो तेरे बाबू का पोता होगा।''
'' मेरा बेटा कैसे होगा? मैं तो इतना छोटा सा हूं।''
''अरे, जब तेरी शादी होगी तब तेरा बेटा होगा ना वो तेरे बाबू का पोता होगा। समझे? ''
'' नहीं समझा।''
'' कोई बात नहीं ये मेरे पोते की तस्वीर है।''
'' क्या नाम है आपके पोते का?''
'' मेरे पोते का नाम है रिक।
'' आंटी ये कैसा नाम है रिक?''
'' बेटे वह जहां रहता है वहां ऐसे ही नाम होते हैं।''
'' कहां रहता है वह?''
'' फ्लोरिडा में।''
'' ये कहां है?''
'' बहुत दूर। सात समन्दर पार।''
'' आंटी समन्दर क्या होता है?''
'' समन्दर माने, समन्दर माने चलो, एक काम करते हैं, तुझे शाम को समन्दर दिखाने ले चलेंगे। अपने आप देख लेना।''
'' आप उसे अपने पास क्यों नहीं रखती आंटी?''
वे फिर से रोने लगती हैं -'' पगले मैं ने उसे आज तक देखा ही नहीं है। कितनी अभागी हूं। मेरा पोता पांच साल का हो गया और मैं ने ने उसे आज तक देखा ही नहीं है। उसे आज तक देखा ही नहीं। पास रखने की बात तो दूर है। कभी कभी फोन पर उसकी आवाज सुन लेती हूं तो मेरे कलेजे में ठंडक आ जाती है।''
'' आपने उसे देखा क्यों नहीं है आंटी।''
'' मेरा बेटा कभी उसे यहां लेकर आया ही नहीं।''
'' क्यों?''
'' उसके पास टाइम नहीं है। वह खुद भी अब यहां नहीं आता।''
'' क्यों नहीं आता?''
'' इन सारे सवालों का जवाब मेरे पास नहीं है बेटे। होता तो क्या तुझे सीने से लगा कर रोती पगले!''
बच्चा समझ नहीं पाता इतनी सारी बातें और उनके बंधन से अपने आपको मुक्त कर लेता है। अब अलग होने के बाद उसका ध्यान घर पर, वहां रखे इतने सामान पर और शानो शौकत पर गया है। उसने पूरे घर का एक चक्कर लगाया है।और लौट कर उनके पास वापस आया है।
'' आंटी, इतने बडे घर में आप अकेली रहती हैं?''
'' सिर हिलाकर बताती हैं, '' हां ।''
'' आपको डर नहीं लगता?''
'' लगता है।''
'' किससे?''
'' बेटे एक डर हो तो बताऊं। कभी अपने आपसे डर लगता है तो कभी अकेलपन से डर लगता है। कभी अपने बुढापे से डर लगता है। बोल, तू मेरे साथ यहां रहेगा मेरा डर दूर करने के लिये?''
'' मेरे रहने से आपका डर दूर हो जायेगा आंटी?''
'' तू नहीं जानता मेरे बेटे तू कितना प्यारा है, तेरे यहां रहने से इस घर का सारा अंधेरा दूर हो जायेगा।''
'' आंटी आप जोक मारती हैं। घर में अंधेरा कहां है। इतनी रोशनी है।''
'' हां बेटे, बाहर से ही तो रोशनी नजर आती है। भीतर का अंधेरा ऐसे ही थोडी नज़र आता है। बोल ना, रहेगा मेरे साथ। मैं तुझे खूब पढाऊंगी। अच्छे स्कूल में तेरा एडमिशन कराऊंगी। तू खूब पढ लिख कर फिर मेरी मदद करना। मेरा डर दूर करना। करेगा?''
'' लेकिन मेरे दोस्त?''
'' दोस्त तो ठीक हैं बेटे लेकिन हम उन्हें ढूंढे कहां? तुम्हें सिर्फ पुल के अलावा कुछ भी तो याद नहीं? कितना अच्छा होता तुम्हारे मां बाप मिल जाते।''
'' लेकिन मैं दोस्तों के पास ही जाऊंगा।''
'' अच्छा एक काम करते हैं। तुम जरा ठीक हो जाआ ितो बंबई में जितने भी पुल हैं हम सब जगह जायेंगे और तुम्हारे दोस्तों का पता लगाएंगे। चलोगे ना हमारे साथ?''
'' चलूंगा आंटी। कबीरा मेरा बहुत ख्याल रखता है। और फिर मोती भी तो है। मैं आपको सबसे मिलवाऊंगा।''
'' ये मोती कौन है?''
'' आंटी मोती हमारा कुत्ता है। बहुत सयाना है। झट से बता देता है कि कौन दोस्त है और दुश्मन कौन।''
'' अरे वाह! कैसे बता देता है भाई?''
'' आंटी जब वो किसी को देख कर सिर हिलाये तो इसका मतलब कि वो दोस्त है और जब किसी को देख कर भौंकना शुरु कर देतो इसका मतलब है कि सामने वाला दुश्मन है।
'' अरे वाह! ये तो बहुत मजेदार बात है। हमें मिलवाएगा तू मोती से?''
'' हां आंटी और एक गप्पू भी है हमारे साथ। हर समय उसकी निकर नीचे उतरती रहती है। खूब मजा आता है।''
'' अरे वाह! चल बेटे अब तू आराम कर ले जरा। मैं भी कुछ काम धाम निपटा लूं। जब भूख लगे तो मुझे या माया आंटी को बता देना। ठीक है। लो इस कमरे में आराम करो। ठीक है। बाद में बात करेंगे।''
'' अच्छा आंटी।''
'' अब से तुम इसी कमरे में रहोगे।''
'' ये इत्ता बडा कमरा मेरे अकेले के लिये?''
'' क्यों डर लगता है क्या?''
'' नहीं। ठीक है आंटी।''
मुन्ना लेट तो गया है लेकिन उसे नींद नहीं आ रही है। ये सारी चीजें, यहां का माहौल और तामझाम उसकी कल्पना से परे है। वह उठ बैठा है। वह पूरे घर में घूम घूम कर देख रहा है। सारी चीजें उसके लिये नई हैं और उसने पहले कभी नहीं देखी हैं। वह कभी स्टीरियो देखता है तो कभी रंगीन टेलीफोन। कभी कभी तस्वीरें देखता है और मूर्तियां। जब चारों तरफ की चीजें देख चुका तो आंटी के दिये हुए खिलौने अकेले खेलने लगा। वह देर तक बैठे उन सारे खिलौनों को उलटता - पुलटता रहा। उसकी दिक्कत ये है कि ज्यादातर खिलौने या तो बैटरी वाले हैं या उन्हें चलाना उसके बस में नहीं। थक हार कर उसने सारी चीजें एक तरफ सरका दी हैं।

मिसेज राय बच्चे को जुहू घुमा कर लाई हैं। उसने अपनी जिन्दगी में पहली बार समुद्र देखा है। बेशक वह तीन महीने से मुंबई में भटक रहा था लेकिन पता नहीं कैसे वह समुद्र तक नहीं पहुंच पाया। उसे कोई भी उस तरफ लेकर नहीं गया। वह समुद्र से मिलकर बहुत खुश हुआ और पानी में अठखेलियां की उसने। बेसक मिसेज राय डर रही थीं कि बच्चा अभी ही तो बीमारी से उठा है, कहीं समुद्र की ठंडी हवा उस पर कोई असर न कर दे, लेकिन बच्चा मस्त होकर पानी से खूब खेलता रहा। वह कभी लहरों से दूर भागता तो कभी पानी के एकदम पास जाना चाहता। मिसेज राय खुद भी उसके साथ झूले में बैठीं, घोडागाडी क़ी सवारी की और गुब्बारे लेकर उसके साथ गीली रेत पर दौडती रहीं। उन्होंने अरसे बाद अपने आप को पूरी तरह भूल कर, बच्चे के साथ बच्चा बन कर एक नया अनुभव लिया।
घर पहुंच कर बच्चा बिफर गया है। उसे अपने दोस्तों की याद आ गयी है। वह रुआंसा हो गया है - आंटी, मुझे कबीरा के पास जाना है।''
'' मिसेज राय की परेशानी बढ ग़यी है - '' देखो बेटे, अभी तुम्हारी तबियत पूरी तरह ठीक नहीं हुई है। अभी तो कुछ दिन तुम्हें दवा खानी है। हम तुम्हें इस तरह से बाहर नहीं भेज सकते। एक काम करते हैं हम। कल हम गाडी में जाकर पूरे शहर में कबीरा को खोज निकालेंगे। तब हम उससे कहेंगे कि तुमसे रोज मिलने आया करे या हम डा्रयवर को कह देंगे वह कबीरा को ले आया करेगा।''
बच्चे को आशा की किरण दिखी है - '' मोती को भी लाएगा?''
बच्चे को इतनी आसानी से मान जाते देख मिसेज राय सहज हो गयी हैं। लपक कर आश्वस्त किया है उसे - '' ठीक है मोती को भी लाएंगे। बस, तुम आराम करो। इतनी देर पानी में खेले तुम।''
लेकिन बच्चे की लिस्ट अभी पूरी नहीं हुई है - '' गप्पू को भी? ''
मिसेज राय को यह शर्त भी मंहगी नहीं लगी - ''ठीक है, गप्पू को भी, हम भी देखें कि उसकी निकर कैसे नीचे उतरती है। चलो अब आप आराम करो। आपकी दवा का भी टाइम हो रहा है।''
अब बच्चा अपने सवालों की दुनिया में वापिस आ गया है। पूरी शाम जुहू पर जो सवाल पूछता रहा, फिर से उसके ध्यान में आ गये हैं - '' आंटी, समुद्र में इतना पानी कहां से आता है?''
मिसेज राय ने उसे समझाने की कोशिश की है - '' अरे बेटा, तुम अभी भी वहीं अटके हो। देखो ऐसा है समुद्र में पहले से ही इत्ता पानी है।''
'' आंटी, समुद्र सब जगह क्यों नहीं होता?''
'' अगर समुद्र सब जगह होगा मेरे भोले बेटे तो हम रहेंगे कहां?''
'' सब जगह पानी रहेगा तो कित्ता मजा आएगा, पानी में खेलते रहेंगे हम।''
'' तो स्कूल कब जायेंगे, काम कब करेंगे और दवा कब खाएंगे नटखट राम जी?''
'' हम दवा नहीं खाएंगे , कडवी लगती है।''
''दवा नहीं खाओगे तो ठीक कैसे होओगे,बोलो तब कबीरा और गप्पू के साथ कैसे खेलोगे।''उन्होंने उसे ब्लैकमेल किया है।
'' ठीक है खाऊंगा।'' वह अपने ही फंदे में फंस गया है।

सवेरे का समय है। वह सो रहा है। मिसेज राय ऑफिस जाने की तैयारी कर रही हैं। उसके पास आकर प्यार से वे उसे चूमती हैं।नौकरानी को आवाज देती हैं - माया, सुनो हमें शाम को वापस आने में देर हो जायेगी। बच्चे का पूरा ख्याल रखना। मैं बीच बीच में फोन करती रहूंगी।''
'' ठीक है मेमसाहब।''
'' जब बच्चा जग जाये तो उसे गरम पानी से नहला देना। उसे अपने आप खेलने देना। खाना वक्त पर खिला देना।
'' अच्छा मेमसाहब।''
'' बच्चे को टाइम पर दवा दे देना। मालूम है ना कौन सी गोली देनी है।''
'' मालूम।''
मिसेज राय एक बार फिर बच्चे का गाल चूम कर जाती हैं।
बच्चे ने जागने के बाद सबसे पहले पूरे घर में आंटी को ढूंढा है। कहीं नहीं मिली उसे। रुआंसा हो गया है वह। उसे रसोई में माया नजर आई है। अब वह उसे भी पहचानने लगा है।
'' आंटी कहां हैं ?''
'' काम पे गई मेमसाब।''
'' कहां?''
'' आपिस।''
'' आपिस क्या होता है।''
'' आपिस माने कचेरी।''
'' कचेरी क्या होता है।''
'' वो सब हमको मालूम नईं। मेमसाब रोज जाता आपिस। शाम कू आता। बाबा, तुम दूध पीयेंगा अब्भी। फिर तुम नहा कर खेलना।''
'' आज कबीरा आयेगा?''
'' हां मेमसाहब बोला कि ड्रायवर जा के कबीरा को खोजेंगा और फिर मुन्ना बाबा और कबीरा एक साथ खेलेंगा।
बच्चा खुश हो गया है। अब उसे आंटी नहीं चाहिये - '' मोती भी आएगा ना?''
'' हां मोती भी आएंगा।''
लेकिन माया के आश्वासन के बावजूद कबीरा नहीं आया है। वह कई बार बालकनी में, बडे वाले कमरे में और पूरे घर में टहलते हुए अपने दोस्तों का इन्तजार कर रहा है। ड्रायवर भी अब तक वापस नहीं आया है। उसने बेशक स्नान कर लिया है। दूध पी लिया है,दवा भी खा ली है लेकिन उसका ध्यान लगातार दरवाजे पर ही लगा रहा है और एक पल के लिये भी वह आराम नहीं कर पाया है।माया के बार बार कहने के बावजूद वह सोने के लिये तैयार नहीं हुआ है। कहीं ऐसा न हो कबीरा वगैरह आयें और उसे सोया पाकर लौट जायें।
वह अकेले बोर हो रहा है। सारे कमरे में खिलौने बिखरे पडे हैं। वह कभी बालकनी में जा रहा है और कभी भीतर आ रहा है। उसका मूड बुरी तरह उखडा हुआ है। वह इस बीच कई बार रो चुका है। उसे समझ में ही नहीं आ रहा कि क्या करे। तभी फोन की घण्टी बजी है। उसे समझ नहीं आता कि फोन की आवाज सुनकर क्या करे। उसे फोन उठाना ही नहीं आता। तभी लपकती हुई माया आयी है और उसने फोन उठाया है। वह फोन सुनते हुए लगातार हां हां कर रही है। फिर उसने उसे बुलाया है - ''बाबा मेमसाहब का फोन है। आप से बात करेंगा।''
बच्चा फोन ले लेता है।लेकिन समझ नहीं आता कि कैसे पकडना है।माया उसे बताती है और कहती है - हैलो बोलने का
'' हैलो, आंटी आप जल्दी आ जाओ। कबीरा नहीं आया।''
मिसेज राय उसे बताती हैं - '' हम जल्दी आएंगे बेटा। तुम आराम करो।''
'' ठीक है।'' फोन माया को लौटा देता है।
बच्चे का मूड बुरी तरह बिगडा हुआ है। वह जोर जोर से रोए जा रहा है। माया उसे कभी गोद में उठा कर चुप कराने की कोशिश करती है तो कभी खिलौने देकर बहलाना चाहती है। लेकिन बच्चा है कि पूरी तरह बिफर गया है और किसी तरह काबू में नहीं आ रहा। माया इस बीच कई बार मेमसाहब को फोन पर बताने की कोशिश कर चुकी है कि बच्चा किसी भी तरह काबू में नहीं आ रहा ही, वह करे तो क्या करे वे किसी मीटिंग में हैं। और उन तक वह चाह कर भी संदेश नहीं दे पा रही। आज तक उसके सामने ऐसी स्थिति नहीं आई थी। उसने कभी अपनी तरफ से मेमसाहब को फोन ही नहीं किया है।
माया उसे बहलाने की कोशिशें कर रही है लेकिन उसे समझ नहीं आता कि क्या करे। तभी माया ने उसे पैंसिल और कागज ला दिया है। बच्चा उस पर आडी - तिरछी रेखाएं खींचने लगा है। कुछ देर के लिये वह बहल गया है। ये देख कर माया की जान में जान आई है।उसका मन बहल गया है और वह अब उसी में मस्त है। कागज रंगते - रंगते उसे नींद आ गयी है और वह वहीं सो गया है।

वह बालकनी में खडा है। नीचे पार्क में बच्चे खेल रहे हैं। वह थोडी देर उन्हें खेलते देखता रहता है । फिर माया से पूछता है -'' मैं नीचे खेलने जाऊं? ''
'' जाओ बाबा, लेकिन जल्दी आ जाना।''
माया उसके कपडे बदलती है और जूते पहनाती है। फिर उसके लिये दरवाजा खोल देती है। माया को नहीं मालूम कि यह बच्चा इस दुनिया का नहीं है। वह जहां से आया है, वहां लिफ्ट, बहुमंजिला इमारतें, चिल्ड्रन्स पार्क और ये सारे ताम - झाम नहीं होते। वह बच्चा इस दुनिया में खुद नहीं आया, बल्कि लाया गया है, और उसे कई सारी चीजों के बारे में बिलकुल नहीं पता।
माया ने तो ये देखा कि बच्चा घर में बैठे - बैठे बोर हो रहा है तो थोडी देर नीचे खेल कर लौट आयेगा। माया को ये बात सूज ही नहीं सकती कि वह बच्चे को खुद नीचे ले जाये और सामने थोडी देर खिला कर वापिस ले आये।
वह थोडी देर तक लिफ्ट के आगे खडा रहता है लेकिन उसे समझ नहीं आता कि इसे कैसे खोले। इधर माया ने दरवाजा भी बन्द कर दिया है। उसे डोरबैल के बारे में पता है लेकिन उस तक उसका हाथ नहीं पहुंचता। वह तीन चार बार हौले से दरवाजा थपकाता है लेकिन भीतर काम कर रही माया तक उसकी आवाज नहीं पहुंचती।
वह धीरे धीरे सीढियां उतरने लगता है।
वह बच्चों के पार्क में पहुंच गया है और उन्हें खेलता हुआ टुकुर - टुकुर देख रहा है। वैसे भी वह उन बच्चों के सामने अपने आपको बौना महसूस कर रहा है। धीरे धीरे वह सामने आता है लेकिन यह तय नहीं कर पाता कि कौन खेल खेले या किस खेल में शामिल हो जाये। अचानक एक गेंद लुढक़ती हुई उसके पैरों के पास आ जाती है और वह उसे उठा कर एक लडक़े को दे देता है। पता नहीं कैसे होता है कि वह भी उनके खेल में शामिल हो जाता है। उसे अपना लिया गया है और उसे अच्छा लगने लगता है। वह सब कुछ भूल कर खूब मस्ती से खेल रहा है।
काफी देर तक वह उनके साथ खेलता रहा है।इस बीच अंधेरा घिरने लगा है और सारे बच्चे अकेले वापिस जा रहे हैं या अपनी आयाओं, बहनों, माताओं के साथ लौट रहे हैं।

वह भी खेल कर थक गया है और वापस लौटना चाहता है। वह कदम बढाता है, लेकिन उसे याद ही नहीं आता कि वह किस बिल्डिंग में से निकल कर आया था। कभी एक बिल्डिंग की तरफ जाता है तो कभी दूसरी की तरफ। वह लडख़डा रहा है और घबरा कर रोने लगा है। वह अपना घर भूल गया है। वह रोते - रोते भटक रहा है और अपनी इमारत से काफी दूर आ गया है। अंधेरा पूरी तरह से घिर चुका है। सडक़ पर रोता हुआ अकेला बच्चा चला जा रहा है। बच्चा वापस सडक़ पर आ गया है।
सूरज प्रकाश
अगस्त 1, 200

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