Saturday, December 19, 2009

जन्म से पूर्व ही

जन्म से पूर्व ही

उस दिन मेरे पापा और हमारे परिवार के अन्य सदस्य बहुत प्रसन्न थे जब मेरी मम्मी ने अपने गर्भवती होने की सूचना उन सब को दी थी। यहां तक कि मेरी दादी ने सब रिश्तेदारों को लड्डू भी बांटें क्योंकि यह खुशखबरी दो सालों के लम्बे अन्तराल की निराशा के बाद मिली थी। दो साल विवाह को हो गये थे और गर्भवती न हो पाने की वजह से पहले मेरी मम्मी ने अच्छा खासा तनाव झेला था।वह तरस गई थी गर्भवती होने के लिये क्योंकि जिस समाज में हम रहते हैं वहां एक बांझ और संतानहीन स्त्री के लिये अच्छे विचार नहीं रखे जाते हैं। जब तक एक विवाहिता अपने उर्वर होने का साक्ष्य न दे दे उसे पर्याप्त सम्मान ही नहीं मिलता बल्कि उसका वैवाहिक जीवन भी खतरे में झूलता नजर आता है। जितनी जल्दी स्त्री मां बनती है उसके परिवार में महत्ता का आंकडा ऊपर उठता जाता है और परिवार में उसका स्थान सुरक्षित हो जाता है।
जिस समाज में हम रहते हैं वहां एक बांझ और संतानहीन स्त्री के लिये अच्छे विचार नहीं रखे जाते हैं।जब तक एक विवाहिता अपने उर्वर होने का साक्ष्य न दे दे उसे पर्याप्त सम्मान ही नहीं मिलता बल्कि उसका वैवाहिक जीवन भी खतरे में झूलता नजर आता है।



मेरे माता पिता ने इस दिन की प्रतीक्षा में कोई कसर नहीं रख छोडी थी सारे अच्छे डॉक्टर्स और विशेषज्ञों को दिखाया और परामर्श लिया था मंदिरों में प्रार्थनाएं की एक बच्चे को पाने के लिये, यहां तक कि तांत्रिकों के चक्कर में भी पडे और वह सब किया जो जो उन्होंने कहा। और अन्तत: वह दिन आ ही गया जिसने सबको प्रसन्न कर दिया, खासतौर पर मेरी मम्मी को जिसने न जाने कितनी रातें आंखों ही आंखों में काटी थीं। इन सब वजहों से ज्यादातर रिश्तेदार, विशेषत: मेरी दादी ने उन्हें बच्चा पैदा न कर पाने के लिये जिम्मेदार ठहरा कर न जाने कितना सुनाया था। और बस इस तरह मैं अस्तित्व में आया शायद अभी असली संसार में पहुंचने में बहुत समय बाकि थापर मैं खुश था कि मैं परिवार में खुशी लेकर आया हूँ।
जब तक मेरी मां ने अपनी उर्वरता का साक्ष्य नहीं दे दिया उसे यह सम्मानप्राप्त नहीं हुआ था जो कि उसे अब प्राप्त हो रहा था। वैसे मेरी मम्मी मुझे पाकर बहुत प्रसन्न थी किन्तु उसे जी मिचलाने,थकान और स्तनों में हल्के दर्द की शिकायत भी थी जो कि आमतौर पर गर्भस्थापित होने के लक्षण होते हैं। गर्भावस्था के दौरान बढने वाले हारमोन्स की वजह से मेरी मम्मी सम्वेदनशील और मूडी हो गई थीं, कभी वे अत्यधिक प्रसन्नता अनुभव करतीं कभी गहरे अवसाद में डूब जाती। हर भावना बहुत सघनता से महसूस करती, एक पल वह खुशी खुशी मेरे जन्म के बाद के प्लान्स बनाती और अगले ही पल वह रोने लगती कि अगर वह मोटी और बदसूरत हो गई तब भी क्या मेरे पापा उनसे उतना ही आकर्षित रहेंगे अगर वह इसी तरह मोटी होती रहीं तो या वह पहले जैसी खूबसूरत न रहीं तो! ये शंकाए बहुत सहज और प्राकृतिक थीं जिनसे हर गर्भवती स्त्री उलझती ही है। जहां भविष्य के प्रति वे उत्साहित थीं वहीं अपने अन्दर आते शारीरिक बदलावों से वे घबरा भी रहीं थीं। वे चिन्तित थीं कि वो मोटी हो रही हैं। यह परिस्थिति पापा के लिये कठिनाई पैदा कर रही थी। उनकी ऐसी मानसिक स्थिति से पापा स्वयं असमंजस में थे वे उन्हें समझा पाने में असमर्थ थे। पापा उनके आंसुओं से घबरा कर ऐसी स्थिति से बचने के लिये अकसर उन्हें उपेक्षित कर देते जबकि उन्हें इस समय स्नेह की आवश्यकता थी। कभी कभी वे सोचतीं कि मेरे पति मुझसे प्यार नहीं करते हैं और सहयोग तो बिलकुल ही नहीं करते। किन्तु कुलमिला कर दोनों बहुत खुश थे।
मेरी दादी भी उतना ही खुश थीं। अब वे मेरी मम्मी के साथ रहने में आनन्द महसूस करतीं और उनसे अपने अनुभव बांटतीं, जैसे कि मेरी बुआ जी का जन्म, जो कि पापा के भाई बहनों में सबसे बडी थीं। मेरी दादी ने मम्मी को कहा कि अब उन्हें काम कम करना चाहिये आराम ज्यादा, पहले तीन महिनों में ज्यादा आराम करना चाहिये क्योंकि गर्भावस्था के ये पहले तीन महीने बडे नाजुक़ होते हैं। आजकल दादी बडी अच्छी हो गईं थी, मम्मी के प्रति हमेशा सहयोगात्मक रवैय्या रखतीं।अब तक मम्मी ने भी समझ लिया था कि शरीर और दिमाग एक ही हैं, गर्भावस्था में शरीर में जो बदलाव आ रहे हैं उनसे भावनात्मक बदलाव आएंगे ही। गर्भावस्था का प्रभाव जो उनके मानस पर पडा था उससे उन्हें भावनात्मक उतार चढावों को नियंत्रित करने में सहायता मिली।
सब कुछ बहुत अच्छी तरह से चल रहा था। मेरे पापा एक बहुत सुन्दर से बच्चे का पोस्टर लेकर आये और उन्होंने उसे हमारे शयन कक्ष की एक दीवार पर लगा दिया। मेरी दादी ने एक छोटा सा आसमानी रंग का कार्डिगन बुनना शुरु कर दिया और नन्हीं बूटीज भी मेरे लिये बना लीं। मेरे चाचा मेरे लिये खिलौने लेकर आए, एक बंदूक और कुछ और खिलौने। हमारा कमरा छोटे छोटे खिलौनों,प्रॅम आदि से भर गया था। मैं स्वयं भी बहुत खुश था, अपनी मां के गर्भ में पलता हुआ। मैं आसपास के वातावरण के लगातार सम्पर्क में था। मैं स्वाद और महक की प्रतिक्रिया में मैं अपनी पसंद नापसंद को अचानक हिलडुल कर व्यक्त करता। तेज प्रक़ाश, शोर, दबाव और पीडा की प्रतिक्रिया को भी भी मैं अपनी बचाव की मुद्राओं में व्यक्त करता था जबकि संगीत सुन कर मैं या तो जोर से पैर चलाता या चुपचाप आराम से सुना करता। हांलाकि मैं बहुत सारी अवरोधक परतों के बीच था जो कि मुझे बाहर के वातावरण से सुरक्षित रखे थीं - एमीनियोटिक द्रव्य, भ्रूणीय परतें,गर्भाशय और मां का उदरमैं ध्वनियों, सम्वेदों और गति के उत्प्रेरक घेरों में सिमटा था।
जब भी मैं हाथ-पैर चलाता या तब मां के गर्भाशय तथा मेरी धडक़नों में हरकतें बढ ज़ातीं, तब मेरी मम्मी मेरे पापा को अपना अनुभव बताया करतीं। अपनी मां के सान्निध्य में मैं गर्भ में बढ रहा था।
तब एक दिन मेरे पापा की बहन यानि मेरी बुआ जी ढेर सारे बच्चों के सामान के साथ आईं, जो कि निश्चित रूप से मेरे लिये थे। तब उन्होंने मेरी मम्मी को सलाह दी कि मेरी मम्मी के गर्भाशय का अल्ट्रासाउण्ड टैस्ट अवश्य करवाया जाये, किन्तु मेरी मम्मी को कोई समस्या नहीं थी, वे अपनी महिलाचिकित्सक से उनकी राय के अनुसार नियमित चैकअप करवाती रहीं थीं अत: उन्होने मेरी बुआ जी को कहा कि उनकी डॉक्टर ने उन्हें ऐसी कोई सलाह नहीं दी है।
मेरी बुआ चली गईं किन्तु वे दादी के दिमाग में सोनोग्राफी करवाने की बात भर गईं। तब उन्होने मेरे मम्मी पापा पर पास ही के एक क्लीनिक चलने के लिये दबाव डालने लगीं क्योंकि अब यह टैस्ट हमारे छोटे से गांव में भी उपलब्ध हो गया था। मेरी दादी के दबाव के आगे झुक कर मेरे पापा मेरी मम्मी को सोनोग्राफी के लिये ले गये। मेरी मम्मी का दिल आशंकाओं से धडक़ने लगा, साथ ही मेरा भी। सोनोग्राफी करने वाला तकनीशियन मेरी मम्मी को अन्दर लेकर गया। और मम्मी के गर्भ का जहां मैं था, अल्ट्रासाउंड स्कैन हुआ फिर हम सब डॉक्टर से सलाह लेने की अपनी बारी के इंतजार में क्लिनिक की लॉबी में जाकर बैठ गये। डॉक्टर ने हमें बुलवाया और मेरी मम्मी की प्रसन्नता को बढाने वाला समाचार दिया कि बेबी गर्भ में एकदम स्वस्थ है और सबकुछ नॉर्मल है और मेरी मम्मी प्राकृतिक रूप से बच्चे को जन्म दे सकती है। लेकिन मेरे पिता को तो मेरे लिंग परीक्षण के बारे में जानने की ज्यादा उत्सुकता थी, क्योंकि सोनोग्राफी करवाने के पीछे उनका यही तो उद्देश्य था।तोउन्होंने डॉक्टर से आखिरकार पूछ ही लियाऔर उनकी निराशा के लिये डाक्टर ने कहा कि मैं एक लडक़ी हूं। मुझे स्वयं ही नहीं पता था कि एक बच्चा लडक़ा या लडक़ी हो सकता है! या लडक़ा या लडक़ी होने से कोई फर्क पडता है।
जब मेरे लडक़ी होने की खबर सब को पता चली तो घर में सन्नाटा छा गया, मानो इस खबर ने सबकी खुशी छीन ली हो। लेकिन मेरी दबंग दादी ने इस सन्नाटे को तोडा और पापा को कहा कि इस बच्चे को जल्दी ही गिरवा दिया जाएगर्भपातजन्म से पूर्व ही मेरी हत्या! इस निर्णय में परिवार के सभी सदस्यों की मूक स्वीकृति थी सिवाय मेरी मम्मी के क्योंकि वो अपने पहले बच्चे के रूप में मुझे जन्म देना चाहती थी और वे अपनी गर्भावस्था में आनन्द और गर्व महसूस कर रही थी।
संभवतया दहेज प्रथा, जो कि भारत में हिन्दुओं और सिखों में तथा अब अन्य जातियों में भी प्रचलित एक बेहद लालच से भरी प्रथा ही वह कारण है जिसकी वजह से मेरी हत्या की जा रही थी,और मेरे जैसे कितने ही कन्या भ्रूणों की पहले ही की जा चुकी है। एक बेटा यानि कमाई का साधन तब भी, जबकि दहेज मेहनत की कमाई कतई नहीं है। एक बेटी यानि खर्चे का बोझ और नुकसान का सौदा। इस घाटे के सौदे को पाटने के लिये आवश्यक उपाय क्या हो, यही कि समस्या को आरंभ होने से पहले ही समूल नष्ट कर दिया जाये यानि कि कन्या भ्रूण(आधुनिक लिंग परीक्षण के तरीकों से पता कर) को ही नष्ट कर दिया जाए। कैसी विडम्बना है कि आज आधुनिक विज्ञान भी बेटियां पैदा करने के अनिच्छुक पिताओं की सहायता के लिये तत्पर है।
मैं अपनी मम्मी के गर्भ के अन्दर होने वाली हर प्रतिक्रिया को महसूस कर पा रहा था, क्योंकि गर्भाशय में आने वाली ध्वनियों की एक चादर में से मुझे दूर से आती अपनी मां की आवाज एक विशेष सुरक्षा प्रदान करती थी जो कि मेरे आस पास भरे एमिनियोटिक द्रव से आते स्पन्दनों से एकदम अलग थी। मेरे लिये मेरी मम्मी की आवाज बहुत महत्वपूर्ण थी, क्योंकि मैं ही एकमात्र मानव था जो उन्हें सुन सकता था और उनकी भावनाओं को समझ सकता था। मैं सोच रहा था कि अचानक मेरे आस पास की दुनिया ने अचानक तेज घुमावदार मोड ले लिया है। मम्मी सोच रहीं थीं कि दादी ने अपनी सबसे बडी बेटी को कैसे जन्म दिया वह भी तो एक स्त्री हैक्या वे खुद एक स्त्री नही! ये कैसे दोहरे मानदण्ड हैं? अब वह कैसे बिना सोचे समझे, क्रूरता से कन्याभ्रूण को नष्ट करने के विचार का साथ दे दे? हालांकि, मेरी मां के गर्भपात का निर्णय लिया जा चुका था वह भी एक स्त्री के द्वाराजब वह स्वयं एक स्त्री है तो वह किस अधिकार से मेरी मां के अजन्मे कन्या भ्रूण के जीवन और मरण का फैसला करने चली है। आखिरकार मेरी मां का ध्यान गया कि, सभी पहले ही दिन से एक बेटे की कामना कर रहे थे और तभी तो उनकी सास ने हल्का नीला कार्डिगन बनाया था और मेरे चाचा खिलौने वाली बंदूक लेकर आए थे जो कि निस्संदेह एक बेटे के लिये ही किया जा रहा था। ओह!
एक लम्बे भावनात्मक संघर्ष के बाद, मेरी मम्मी पापा के साथ अस्पताल पहुंचीं जहां मेरी हत्या होने वाली थी। मेरी मम्मी का नाम पुकारा गया, और उसे एक फिजीशियन के कमरे में ले जाया गया,जहां गर्भपात होना था। मेरी मां अब तक मानसिक रूप से तैयार नहीं थी और वह इस विजिट को एक सहज चैकअप की विजिट समझ रही थी कि अचानक उसे ख्याल आया कि ओह! नहींऐसा नहीं है।
एक कोने में निर्वात पम्प जैसी एक मशीन रखी थी। आपरेशन करने वाले डॉक्टर ने उसे आराम से लेटे रहने को कहा क्योंकि वह पेल्विक जांच कर रहा था। यह जांच पूरी होने के बाद उसने एक दर्दनिरोधक दवा का इंजेक्शन मेरी मम्मी के गर्भाशय के द्वार पर लगाया ताकि गर्भपात कम कष्टकारी हो। धीरे धीरे उसने निर्वात पम्प मां के गर्भाशय में डाल कर मुझे खींच कर बाहर निकाल कर आपरेशन थियेटर के कूडेदान में फेंक दिया। मेरी मम्मी को दो घण्टे बाद अस्पताल से दो दिन के आराम की सलाह देकर भेज दिया गया।
अचानक मेरे ऊपर कुछ गिरा, पहले पहल मैं ने यही सोचा कि एक और लिंग परीक्षण का शिकार कोई कन्याभ्रूण इस कूडेदान में फेंका गया है जो कि मुझ पर आ गिरा है, अचानक मैं दिवास्वप्न से जागा मैं पसीने में भीगा हुआ थाओह यह कन्याभ्रूण नहींयह तो तकिया था जो कि मेरे बेटे ने मुझ पर फेंका था। ओह! भगवान का लाख लाख शुक्र कि यह बस एक दु:स्वप्न था।
मूलकथा - रितेश झाम्ब
अनुवाद - मनीषा कुलश्रेष्ठ
दिसम्बर 12, 2001

No comments: