Sunday, December 20, 2009

बडी बहन

बडी बहन
सुदर्शन छोटा था। दसवी कक्षा में। पिता थे स्कूल मास्टर और मां अनपढ। घर के अन्य सदस्यो में थी सुदर्शन की एक बडी बहन सुशीला और तीन छोटे भाई। परिवार का एकमात्र आधार था सरस्वती पूजा। यही एक ऊम्मीद थी जो इस निम्नमध्यवर्गीय घर को भविष्य में उबार सकती थी। परिवार का हर सदस्य इस बात को अच्छी तरह समझता था। लेकिन सब जन इस बात को अपने दिल में समाये रखते। फिजूल चर्चा में किसकी रूचि नहीं थी।
सुशीला ने कॉलेज के द्वितीय वर्ष में थी। यह बात तब की है जब लडकियों का कॉलेज में दाखिला लेना कुछ मुश्किल तो था लेकिन कुछ लोग इसे अब विकास और सम्मान का दर्जा भी देने लगे थे।पास-पडोसी कहते ''ंमास्टर साब ने बडा साहसपूर्ण कदम उठाया है जो सुशीला को कॉलेज में पढा रहे है।'' लेकिन जिन्हे उस परिवार की आर्थिक हालात का अन्दाज था ऐसे सहयोगी और रिश्तेदारो को सुशीला का यह कदम रास नहीं आया। वे कहते ''वो तो ठीक है भाई लेकिन सुशीला ने सुदर्शन के भविष्य का तो सोचना चाहिये।मास्टर साब के पास इतने पैसे तो नहीं कि वे अपने दोनो बच्चों को पढा सके।''
धीरे धीरे सुशीला इस बात से वाकिफ होने लगी। पिताजी का तो कोई विरोध नहीं था बल्कि वे तो चाहते थे कि बेटी खूब पढे और नाम कमाए। दिन बितते गये। सुदर्शन और सुशीला की पढार्ईअच्छी चल रही थी। इसी बीच सुशीला को कॉलेज से लौटने में कुछ देरी होने लगी। पहले तो मां ने बात को टाल दिया। लेकिन आसपास के लोग क्या कभी ऐसे अवसर छोडते हैं? दकियानूसी समाज के ढांचे में चर्चा होने में देर नहीं लगती। बात का बतंगड भी बन जाता है। तब मां ने एक दिन सुशीला से पूछ ही लिया ''सुशीला मै देख रही हूॅ इन कुछ दिनोसे तुझे घर लौटने में देर हो जाती है। बात क्या है।'' ''बस यूँ ही मा कॉलेज में पढाई कुछ ज्यादा चल रही है।'' सुशीला ने जवाब दिया।ऐसे ही कुछ दिन और निकल गये। ''आज सहेली के यहॉ पार्टी थी कल लाईब्ररी में पढाई कर रही थी'' ऐसे प्रत्युत्तर मिलने लगे।
मां के साथ साथ पिताजी और सुदर्शन भी कुछ चिंतित जरूर थे। अब सुशीला को डाँट भी पडने लगी। उसकी कॉलेज की पढाई बन्द कर दिये जाने के आसार नजर आने लगे। सुदर्शन का मन बडी बहन को दोषी मानने को तयार नहीं था। और वह निष्पाप बालक तो यह भी ठीक नहीं जानता था कि उसकी इतनी अच्छी बहन को क्यों भलाबुरा कहा जा रहा है। सो उसने बात की गहराई में जाकर पता लगने की ठान ली।
चुपके चुपके एक दिन वह सुशीला के पीछे निकल पडा। बहन कहॉ जाती है क्या करती है इसे अब वह जानकर ही दम लेनेवाला था। उसे आश्चर्य हुआ कि बहन कॉलेज का रास्ता छोड क़िसी और ही दिशा में जा रही थी। कुछ देर बाद सुशीला ने एक बडी सी कोठी में प्रवेश किया। खिडकी से झॉककर सुदर्शन, बहन कहॉ जाती है और क्या करती है यह देखने लगा। एक कमरे में दो छोटे बच्चों को सुशीला टयूशन देने लगी तो भाई के ध्यान में आया कि उसकी पढाई के लिये पैसे जुटाने का यह रास्ता बहन ने खोज निकाला है।
उसके दिल में बडी बहन के प्रति आदर और प्रेम उमड आया और उसके ऑसू निकल आये। उस घर के बुजर्ग मालिक हरिप्रसाद यह सब कुछ निहार रहे थे। कुछ बाते उनके ध्यान में आने लगी। उन्होने सुदर्शन को पास बुलाकर पूछा ''बेटा तुम कौन हो और यहॉ क्या करने आये हो।'' सुदर्शन ने सारी बाते विस्तार से बयान की। बताया कि उनके परिवार में पैसे की तंगी है और शायद पैसे के लिये ही उसकी बहन इन बच्चो को पढाती है। और आगे कहा कैसे उसके घर के अन्य सदस्य और पास पडोसी सुशीला के बारे में ऐसी बाते करते हैं जो उसकी समझ में नहीं आती।
हरिप्रसाद सब कुछ समझ गये। अगले दिन हरिप्रसाद ने अपने छोटे पुत्र नरेश को बुलाकर कहा ''बेटा नरेश क्या तुम्हे मालूम है तुम्हारे भाई विजय के बेटों को कौन पढाने आता है।'' नरेश ने बिना झिझक के जवाब दिया ''हां वो सुशीला आती है ना।'' पिता ने बात को आगे बढाते हुए कहा ''सुशीला कैसी लडक़ी है।'' नरेश अब कुछ परेशान नजर आया। वो समझ नहीं पा रहा था कि पिताजी ऐसी बात क्यों पूछ रहे हैं। फिर भी उसने जवाब दिया ''पिताजी वह तो बहुत अच्छी लडक़ी है। अच्छा पढाती है समयपर आती है और उसका व्यवहार बहुत शालीन है।'' तब हरिप्रसाद ने कहा ''क्या तुम सुशीला से शादी करोगे।''
आश्चर्यचकित नरेश तुरन्त कुछ भी नहीं बोल पाया। उसकी भाभी काननबाला अपने श्वसुरजी का यह अनोखा व्यवहार देखसुन रही थी। उसकी भी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। सो उसने देवर का पक्ष लेते हुए श्वसुरजी से पूछा ''पिताजी आप की बातो का आज मै कुछ अर्थ नहीं लगा पा रही हूं। जरा विस्तार से कहिए कि बात क्या है।''
हरिप्रसादजी ने उन्हे बैठने को कहा और बोले ''कल सुशीला का छोटा भाई चुपके से यह देखने आया था कि उसकी बडी बहन क्यों घर देर से लौटती है। वह निष्पाप बालक शायद समझता हो कि उसकी बहन कोई घृणास्पद काम तो नहीं कर रही। पैसे की मजबूरी इस दुनिया में अनेक बुराइयों को जन्म देती है।
मै चाहता हूं ऐसी सुशील और नेक लडक़ी को हम इस घर में आदर का स्थान दें। नरेश और उसका विवाह मेरे इस इरादे को पूरा कर सकेगा और यह एक निश्चित ही सुखद घटना होगी।'' नरेश ने पिता के प्रस्ताव पर विचार किया और हामी भर दी। अब सुशीला घर की बहू बनकर जेठ के लडको को पढाती है। नरेश के साथ उसका जीवन हॅसीखुशी से भर गया है। सुदर्शन और उसका परिवार भी खुश है।
- डॉ सी एस शाह
अगस्त 3, 2000

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