Sunday, December 20, 2009

पागल

पागल
लोग कहते हैं कि वह पागल है।
सभी मानते हैं कि वह पागल है।
खुद उसे विश्वास हो चला है कि वह पागल है।
लोग कहते हैं कि शादी से पहले से ही वह पागल है।
ससुराल वाले भी इस बात पर यकीन करते हैं कि वह शादी के पहले से ही पागल है।
खुद उसे लगने लगा है कि वह शादी से पहले की उसकी गतिविधियां पागलपन से मेल खाती हैं।
वह अपनी बड़ी हो रही बेटी से इस संबंध में सवाल करती है तो वह हंसकर बात को टाल जाती है। ऐसे में अपने पागलपन के बारे में उसका शक यकीन में बदलने लगता है। क्योंकि जब सबके सब उसे पागल समझते हैं तो बेटी भी जरूर मानती होगी। मगर बेटी का व्यवहार शुबहा पैदा करता है।
बेटी उसकी देखभाल करती है। उसे नहलाती है। कपड़े पहना देती है। बालों में कंघी कर देती है। खाना परोस देती है लेकिन यह कभी नहीं कहती कि वह पागल है। उसे लगता है कि बेटी उससे सहानुभूति रखती है, इसलिए उसे पागल नहीं कहती, लेकिन बेटी जानती है कि वह पागल है। चूंकि वह उसकी मां है, इसलिए चुपचाप उसकी टहल कर देती है।
उसका जवान बेटा उससे कभी-कभी ही बात करता है। ज्यादा बोलने पर उसे डांट भी देता है। उसे लगता है कि उसका जवान बेटा ऐसा इसलिए करता है क्योंकि वह सही में पागल है। लेकिन उसे पागल कहने पर उसका जवान बेटा जब लोगों को डांटता है तो उसे अच्छा लगता है। उसकी सास मर चुकी हैं। उसके ससुर अब इस दुनिया में नहीं हैं। उसे अपनी मझौली देवरानी पर विश्वास नहीं है। उसे भतीजे-भतीजियों पर यकीन नहीं है।
उसके छोटे देवर की अभी-अभी शादी हुई है। उसे उम्मीद है कि छोटी देवरानी उसका खयाल रखेगी। जब वह ब्याह कर आई थी, तो छोटा देवर हाईस्कूल में पढ़ता था। हॉस्टल से घर आता तो वह उसका बहुत खयाल रखती थी। सासू जी के नहीं रहने पर और भी ज्यादा ध्यान देती थी। वह छोटे देवर को बेटे की तरह चाहती थी। बहाना बनाकर अपने हिस्से का दूध उसे पिला देती थी। हिस्से से ज्यादा मिठाइयां खिला देती थी। उसकी गलतियों की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेती थी।उसे दुख है कि छोटा देवर उससे अब पहले की तरह बात नहीं करता। कोशिश भर उससे बचना चाहता है। शायद उसने भी मान लिया है कि वह पागल है।
उसे विश्वास हो चला है कि सभी उससे किनारा कर रहे हैं, क्योंकि सही में वह पागल है। उसे बस इतना सुकून है कि उसका पति उसकी निगरानी करता है। घड़ी-घड़ी उसे डांटता है, लेकिन उसकी जरूरतों का भी खयाल रखता है। उसे लगता है कि उसकी स्मृतियां उसे धोखा दे रही हैं। हालांकि वह याद करती है तो धीरे-धीरे, टुकड़ों-टुकड़ों में पिछली बहुत सारी, बल्कि सारी बातें याद आती हैं।
उसकी शादी में बड़े बखेरे हुए। दहेज को लेकर काफी खींचातानी हुई। अगुवा दोनों तरफ से रिश्तेदार था। अगुवा ने उसके मायके वालों का ज्यादा पक्ष लिया था। इस बात को लेकर उसकी ससुराल की रिश्तेदारी में तनाव अब तक गरमाया हुआ है। उसकी शादी में बारात विदा होने तक टंटा होता रहा। कभी बाराती उछलते तो कभी घराती उफनते थे।
ससुराल आने पर उसकी सुंदरता को लेकर भी कानाफूसी होती रही। अगुवा ने उसकी सुंदरता की जितनी तारीफ की थी, वह वैसी सुंदर थी नहीं। उसे अगुवा पर बड़ा कोफ्त हुआ था...सही बताने में क्या हर्ज था। उसके पिता ने उसकी पढ़ाई को लेकर झूठ बोला था कि वह मैट्रिक पास है। बाद में जब पता चला कि वह मध्यमा पास है तो ससुराल में उसकी बड़ी किरकिरी हुई। आस-पड़ोस की महिलाएं उस पर ताने कसतीं। उसे अपने पिता का झूठ बोलना बहुत दिनों तक सालता रहा।
उसकी सासू जी ने शादी में मिले सामान को लेकर नाक-भौंह टेढ़ी की थी। उसकी मां को दुत्कारा था...न जाने कौन संस्कृति की जनानी है। इधर की औरतें लेन-देन के मामले में इतनी तंग हाथ नहीं होतीं।
सास बोलतीं-कहतीं तो उसे बुरा नहीं लगता, लेकिन उनकी आड़ लेकर दूसरे लोग ताने मारते तो उसकी देह में आग लग जाती। उसकी सास जमींदार घराने की बेटी थी। अंतिम घड़ी तक उनके मायके से उपहार-सौगात आते रहते थे। ससुराल में उनकी तूती बोलती थी। पट्टीदार उनसे बात लड़ाने की हिम्मत नहीं करते थे। उनका बड़ा व्यक्तित्व था। सबको साथ लेकर चलने की काबिलियत थी उनमें। वह मानती है कि वह उन जैसा कभी नहीं बन सकी।
उसकी चचेरी सास उसके परिवार को खुशहाल देखना नहीं चाहती थी। अक्सर दोनों परिवारों में झड़प हो जाती थी। अब वह महसूस करती है कि उसकी शादी केबाद चचेरी सास उसे मोहरे के रूप में इस्तेमाल करने लगी थी। बात-बात पर उसका पक्ष लेकर उसकी सास से उलझ पड़ती थी। इस बात को लेकर उसके और सासू जी के बीच दुराव बढ़ता चला गया। बड़े व्यक्तित्व वाली अपनी सास से छोटी-छोटी बातों के लिए उलझने के कारण भी लोगों ने उसे दुत्कारना और पागल करार देना शुरू कर दिया था।
वह आज भी कहती है कि सासू जी इतना होने पर उसकी चचेरी सास को छोटी बहन की तरह मानती थीं। जरूरत के वक्त वही उनके काम आया करती थीं। खुद उसे सिखाती थीं कि चचेरी सास का अदब माने, उन्हें सम्मान दे।
वह आज भी इस गुत्थी को नहीं सुलझा पाई कि किस कारण से उसकी चचेरी सास उसके परिवार से बात-बेबात उलझती रही हैं।
उसकी चचेरी सास अकेले में उसे डराती थी, धमकाती थी। उसे बार-बार कहती थी कि बड़ी बहू होने के नाते घर की हर चीज पर उसका ज्यादा से ज्यादा हक बनता है। वह बेवकूफ है जो देवरों की सुख-सुविधाओं का इतना ध्यान रखती है। विरोध करने पर चचेरी सास उसे पागल कहती थी। चचेरी सास से प्रभावित चचेरी जेठानी कहती कि उस पर किसी डायन का साया मंडरा रहा है। वह बचकर रहे। लेकिन जब कभी वक्त आता तो उसे कोसने से बाज नहीं आती थी...तुम्हारी शक्ल ही अशुभ है। तुम्हारी आंखें डरावनी हैं। तुम घर के विनाश का कारण बनोगी।
चचेरी जेठानी कहती कि गांव की डायनों की आंखों पर वह चढ़ी हुई है क्योंकि उसका आसन बहुत कमजोर है। उसे डायनों की ताकत और कारनामों के किस्से सुनाए गए। उसे जानकारी दी गई कि डायनें रात को गाछ-वृक्ष की सवारी करती हैं। आधी रात से लेकर भोर के पहले पहर तक वे निर्वस्त्र विचरण करती हैं। उस वक्त उनके रास्ते में जो आता है, वे उसे खत्म कर देती हैं। डायनें पसंद आए स्त्री-पुरुषों को मंत्र प्रभाव से तड़पा-तड़पा कर मारती हैं। उनकी प्रतिकृति किसी जीव-जंतु में स्थापित कर उनका पी जाती हैं।
वह उन बातों का मजाक उड़ाती तो कुढ़ कर चचेरी जेठानी उसे उन्मादी जनानी करार देती। दांत पीसकर कहती कि जल्दी ही वह पागल हो जाएगी।
किसी बात पर अपनी सफाई देते समय जब वह सिर पर घुंघट काढ़े रहती तो भी उस पर ताने कसे जाते...घुंघट जितनी लंबी, जुबान उतनी तीखी।
इतना जरूर था कि उसके बात करने में तारतम्यता नहीं रह जाती थी। लोग कहते और खुद भी उसे लगने लगता कि आखिर ऐसा क्यों हो जाता है। हालांकि डॉक्टर ने कहा था कि वह स्वाभाविक रूप से सोचती है। उसका धीरे-धीरे काम करना कोई चिंता का विषय नहीं है। यह उसकी प्रकति है।
सामान्य डॉक्टरी जांच कराने पर भी उसके परिवार से जलने वाले लोग चुपके से उसे कह आते कि डॉक्टर से उसके पागलपन की जांच कराई जा रही है। और वह अपने परिवार वालों से लड़ पड़ती कि वह तो ठीक-ठाक है, फिर क्यों पागलों के डॉक्टर के पास उसे ले जाया जाता है।
उसके इस व्यवहार से घरवाले बड़े चिंतित रहते। उन्हें भी विश्वास हो चला था कि वह सही में पागल है।
इसी दरम्यान हुई एक भूल ने उसे सार्वजनिक रूप से पागल करार दे दिया।
खुद उसने अपने पति के चरित्र पर उंगली उठा दी।
उसे लगा कि उसका पति उससे ज्यादा दूसरी औरतों पर ध्यान देता है। इस बात को लेकर उसने बड़ा टंटा खड़ा कर दिया था कि एक-दो स्त्रियों को वह जानती है जिसके साथ उसके पति के नाजायज संबंध हैं।
वह अपने पति पर जरूरत से ज्यादा नजर रखने लगी। उससे बात-बेबात बहस करने लगी। घर के सारे लोग एक तरफ और वह अकेली दूसरी तरफ। इसको लेकर उसके साथ मारपीट की जाने लगी और वह भी बुरी तरह। लेकिन वह अपने कहे पर अड़ी रही। यहां तक कि देवता-पितर तक की कसमें खाईं। सौ लोगों के संयुक्त परिवार में किसी को भी उसके पति के चरित्र पर शक नहीं था, न हुआ। उसके मां-बाप, भाई-बहन भी उसे समझाने में विफल रहे।
बात आंगन की दीवारों के पार जाने लगी। परिवार की इात सरेआम हो जाए, इससे पहले ही उसे पागल करार दे दिया गया। डॉक्टरी जांच कराई गई। बिजली के झटके लगवाए गए।
वह कभी रोती, कभी हंसती। घड़ी-घड़ी बड़बड़ाती रहती। अकेले में रामायण की चौपाइयों और छंदों की जोर-जोर से व्याख्या करने लगती। कभी शादी के गीत गाती, कभी विरह के राग छेड़ती।
पागलपन ने उसे आराम दे दिया। वह कोई काम नहीं करती। उसे कोई किसी काम के लिए नहीं कहता। वह भी बीभत्सता पर उतर आई। बिछौने पर ही शौच कर देती। गंदे कपड़े कई-कई दिनों तक पड़े रहते। उसके कमरे से दुर्गंध आती रहती। खीज कर उसका पति उसे पीट देता लेकिन वह टस-से-मस नहीं होती। आखिर में उसके पति को ही उसके गंदे कपड़े धोने पड़ते।
बेटे को बहु के गंदे कपड़े धोते देख उसकी सास की छाती फट जाती। गांव टोले की जनानियां उन्हें बहू को लेकर उलाहना देतीं तो वह तड़प कर रह जाती। बहू को ठुनके लगाती। अपने बेटे के भाग्य को लेकर बहुत रोती।
समय ने पलटा मारा। सारी कटुता के बावजूद उसका खयाल रखने वाली उसकी सास चल बसी। उसके सिर पर हमेशा स्नेह का हाथ रखने वाले ससुर जी भी नहीं रहे। इसके साथ ही उसके पागलपन का नशा भी झड़ गया।
आज वह पागलपन को ढो रही है। उसकी अच्छी बातों पर लोग हंसते हैं...देखो, पगली कैसी गंभीर बातें करती है।
समय के साथ उसे महसूस हुआ कि सभी लोग उसके पति को उसकी अच्छाइयों के लिए पसंद करते हैं। उसके पति का स्वभाव ही ऐसा है कि वह सबसे हंसी-मजाक कर लेता है। वह उस समय की अपनी मानसिक स्थिति का आकलन नहीं कर पाती है जब अपनी ही अनावश्यक जिद पर अड़ी रही थी।
उसे कभी-कभी लगता है कि सचमुच उस पर पागलपन सवार है। वह हंसती है तो देर तक हंसती रह जाती है। वह हंसी रोकना चाहती है लेकिन सफल नहीं हो पाती। किसी बात को लेकर बड़बड़ाती रहती है। लोगों से बिला वजह झगड़ने पर उतारू हो जाती है। वह महसूस करती है कि ऐसा करते वक्त खुद पर उसका काबू नहीं होता।
वह विचलित है कि इस पागलपन का क्या करे। उसकी सफाई को भी लोग पागलपन ही समझते हैं। उसने खुद अपने जीवन को बर्बाद किया है। आज न तो खुद के कहे पर उसका अधिकार है और न ही खुद के चले पर। वह किसी अदृश्य के प्रभाव से संचालित हो रही है।
वह अपने अदृश्य संचालक को पाना चाहती है। उससे बात करना चाहती है। उसे लगता है कि शायद वह कोई पागलों का नियंता होगा। वह उससे पूछना चाहती है कि आखिर किस वजह से उसमें पागलपन के बीज डाले गए। उसे खुद पर बहुत भरोसा था। उसके घर वाले उसकी सुशीलता पर गर्व करते थे। उसने किस शैतान के वशीभूत अपने लिए कब्र खोद लिया।
वह अपनी आत्मा की शुध्दता के लिए शीघ्र मृत्यु चाहती है लेकिन जानबूझकर मरना नहीं चाहती। सामान्य मौत चाहती है वह। उसे विश्वास है कि मरने पर यमराज उसे उसके अदृश्य संचालक का पता-ठिकाना बताएंगे। तब वह तसल्ली से उससे सारी बातों का कैफियत पूछेगी।
वह चाहती है कि उसे कोई साल-दो-साल के लिए कहीं दूर ले जाए। जब वह लौटे तो लोग उसे सही रूप में पाएं। लेकिन कहीं ले जाना तो दूर,उससे कोई सही-सही बात भी नहीं करता।
वह समझ गई है कि उसे अब ऐसे ही जीना पड़ेगा। जीवन की अंतिम घड़ी तक पागल बनकर ही रहना पड़ेगा।
उसे सुकून है कि उसकी बड़ी हो रही बेटी को लोग सुशील और व्यावहारिक समझते हैं। सभी कहते हैं कि ससुराल में बेटी का गुजारा हो जाएगा। लेकिन घर की जिम्मेदारियों की वजह से उसकी बेटी पढ़ नहीं पाती, यह बात उसे टीसती है।
वह डरती है कि उसका जवान बेटा बहू को लाकर उसे भूल जाएगा। उसकी बड़ी हो रही बेटी ब्याह कर ससुराल चली जाएगी। गृहस्थी की बाकी व्यवस्था में मशगूल होकर उसका पति उस पर ध्यान नहीं दे पाएगा। ऐसे में वह क्या करेगी? वह मानती है कि इस हालत के लिए वह खुद जिम्मेदार है, लेकिन अब इसके सिवा क्या चारा है कि घटनाओं के साथ जीने की आदत डाल ले।
वह कोशिश करती है कि मंझली देवरानी से झगड़ा न हो। वह इस आशा से भतीजियों की टहल कर देती है कि बड़ी होकर ससुराल जाने से पहले तक उसकी देखभाल कर देगी। उसे आशा है कि उसके छोटे देवर के बच्चे उसे बड़ी मां का दर्जा देंगे, बुढ़ापे में उसका बेड़ा पार लगा देंगे।
वह अब अपने परिवार के बारे में ज्यादा से ज्यादा सोचती है। यह अलग बात है कि अब उसकी बात पर कोई कान नहीं देता, लेकिन वह दिल से घर की खुशहाली चाहती है। आज भी मौका-बेमौका उसकी चचेरी सास देवरानियों के खिलाफ उसका पक्ष लेती है, उससे गुफ्तगू करना चाहती तो उसे बहुत बुरा लगता है। हालांकि उल्टी बातों को अब वह हंसकर टाल देती है लेकिन उसे खराब लगता है जब चचेरी जेठानी घर में बांट-बखरा के लिए उसे उकसाती है।
वह खुश है कि उसका पागलपन उसे समझदार बना रहा है।


रणविजय सिंह सत्यकेतु
मार्च 4,2008

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