Sunday, December 20, 2009

परिदृश्य

परिदृश्य
'' सुनो खाना तैयार है।''
'' हाँ।''
''पानी गरम करने रख दिया बाथरूम में?''
'' हाँ।''
'' कमीज क़ा बटन लगा दिया?''
'' हाँ।''
'' प्रेस भी कर दो।''
'' कर देती हूँ।''
'' टिफिन जरा जल्दी बना दो, देर हो रही है।''
'' बना देती हूँ।''
'' रोहित को आज स्कूल छोड देना, मैं जल्दी में हूँ।''
'' छोड दूंगी।''
'' रंजू को डॉक्टर को भी दिखा देना, हो सकता है शाम को देर से लौटूं।''
'' दिखा दूंगी।''
'' ब्रीफकेस तैयार है? ''
'' तैयार है।''
'' ये शेल्फ इतनी गन्दी क्यूं है? क्या करती रहती हो तुम सारा दिन घर पर? कुछ नहीं होता तुमसे''
''''
'' अगले इतवार को कुछ दोस्तों को पार्टी दूंगा। हो जायेगा तुमसे? ''
''हो जायेगा।''
'' देख लो, फिर मत कहना कि''
'' नहीं कहूंगी।''
'' मीनू मैं तैयार कर दूंगा।''
'' अच्छा।''
'' कोई नौकर चाहिये तो मैं दफ्तर के चपरासी को।''
'' नहीं, मैं कर लूंगी।''
'' अच्छा फिर मैं निकलूं जल्दी।''
'' मि गोयल पार्टी बहुत शानदार रही। सच आज तो तबियत झूम गई।''
'' थैंक्यू।''
'' किया किसने यह सब?''
'' हम दोनों ने।''
'' सचमुच खूब हैं आप भी, क्या अरेन्जमेन्ट्स थे। मजा आ गया। आज पी भी खूब यार लोगों ने। फिर कब होगी ऐसी पार्टी?''
'' जब आप कहें तब होगी।''
'' अरे! मिसेज गोयल दिखाई नहीं दे रहीं उन्हें भी बधाई दे दें।''
'' होंगी यहीं कहीं।''
''अच्छा कह दीजियेगा हमारी ओर से। सचमुच कितना हो जाता है उनसे हम तो। अच्छा चलें अब।''
'' अच्छा जी, शुक्रिया।''
'' अच्छा मि गोयल, हमें विदा दीजिये, आज तो सही सलामत घर पहुंच जायें हम, वही बहुत है।''
'' '' अच्छा जी, थैंक्यू वैरी मच फॉर कमिंग।''
'' नहीं नहीं मिगोयल, आज तो हम न आते तो कुछ मिस हो जाता। आपकी वाइफ कहां हैं? दिख नहीं रहीं हैं।''
'' होंगी यहीं कहीं, अपनी किसी सहेली के साथ ।''
'' उनसे कहूंगी, पार्टी में आपको अकेला न छोडा करें, बडे शैतान हो जाते हैं आप!''
'' आप मजाक कर रही हैं। ऐसा क्या किया मैं ने आपके साथ?''
'' क्यूं नहीं किया?''
'' आप नाराज हो सकती थीं।''
'' मि गोयल, धीरे धीरे मत चला कीजिये। जिन्दगी आगे निकल जायेगी।''
'' क्या कर रही हो?''
'' पढ रही हूँ।''
'' पढ रही हो। क्यूँ?
'' पढना जरूरी है इसलिये। तुम तो कहते हो न, कम पढी लिखी बीवियां बोर होती हैं। समाज में उनसे इज्जत भी नहीं बढती।बीवी हो तो मिसेज चोपडा जैसी हो, जो नैनीताल में मि चोपडा के बगैर एक महीना रह आई। या मिसेज क़ुन्दन जैसी हो जो पार्टीज में हर पुरुष के साथ क्या खूब नाचती हैं।''
'' ओऽहो, क्या बात है! हो जाओगी तुम उनके जैसी? ''
'' कोशिश करती हूँ।''
किताबें पढने से?''
'' नहीं सिर्फ किताबें पढने से तो नहीं। यह मुश्किल है पर नामुमकिन तो नहीं।''
'' कोशिश करती रहो। शायद कामयाब हो जाओ। अच्छा दूसरे कमरे में जाकर पढो। मुझे नींद आ रही है।''
'' अच्छा नाचती हो। कहाँ से सीखा?''
'' सीख लिया? ''
'' मेरे लिये? ''
'' तुम्हारे लिये क्यूँ? अपने लिये। हर इन्सान अपने लिये ही नाचता है। दूसरों को जरूर यह लगता है कि वह उनके लिये नाच रहा है।''
'' ओ होऽ कहाँ से सीखी यह भाषा।''
'' जिन्दगी से।''
'' सुना है किसी नौकरी के चक्कर में हो? ''
'' हाँ, हूँ तो।''
'' तुम और नौकरी? भगा दी जाओगी अगर किसी इन्टरव्यू के लिये गई तो।''
'' भगा दी गई तो किसी और जगह कोशिश करुंगी।''
'' अच्छा करती रहो।''
'' ये नये नये फैशन के कपडे क़ैसे पहनने शुरु कर दिये तुमने? ''
'' क्यूं तुम्हें तो पसन्द हैं ना! तुम तो कहते हो मिसेज क़मल हमेशा।''
'' हाँ, ठीक है। पर मि कमल अमीर आदमी हैं। तुम इस तरह खर्च नहीं कर सकतीं। और मिसेज क़मल की बात ही दूसरी है। तुम अगर उनकी तरह हो जाओ तो।''
'' अगर हो जाऊं तुम्हें अच्छा लगेगा? ''
'' अच्छा! मेरे ऐसे नसीब कहाँ? यहाँ तो जब भी बुलाओ, हल्दी लगे हाथ ही मिलते हैं।''
'' अच्छा, लोगों से हाथ मिलाना कितना अच्छा लगता है।''
'' हाँ लगता तो है। पर तुम औरतों को। हम तो हाथ मिलाते मिलाते तंग आ जाते हैं साले। ''
'' और उसके लिये जरूरी है, हाथों में हल्दी न लगी हो। हाथ साफ सुथरे हों। नर्म मुलायम,खूबसूरत।''
'' बिलकुल।''
'' और इसके लिये जरूरी है, घर के कामों से खुदको फारिग रखना।''
'' हाँ, है।''
'' उसके लिये जरूरी है नौकर का प्रबन्ध।''
'' हाँ, पर।''
'' वह मैं ने कर लिया है।''
'' आज मैं भी चलूंगी तुम्हारे साथ, मि चोपडा की पार्टी में।''
'' तुम क्यूँ? आज से पहले तो कभी नहीं कहा।''
'' आज से पहले मुझे वह सब नहीं आता था, जो अब आता है। मसलन डांस, म्यूजिक़ की समझ,बडे बडे तराशे नाखून, कोमल हाथ, कसा बदन, अच्छे कपडे हाय, हलो, आयम सॉरी वाली जिन्दगी।
'' अब नुमाइश का इरादा है?''
'' नहीं नुमाइश नहीं। खुद को जानना है और तुम्हें भी। फिर तुम्हें तो खुश होना चाहिये कि मैं ने यह सब सीखा। यही चाहते थे न तुम?''
'' मैं? मैं चाहता था? ''
'' हाँ तुम, तुम्हीं तो कहते थे।''
'' अच्छा अच्छा, ठीक है। चलो अब।''
'' अरे! मिसेज ग़ोयल क्या हो गया है आपको? आप तो सारी की सारी बदल गईं। मि गोयल का कमाल तो यह नहीं हो सकता। आखिर वह राज क्या है? ''
'' राज कुछ नहीं। मैं जीना सीखने लगी हूँ।''
'' जीना! जीना तो आज हम आपको सिखायेंगे मिसेज ग़ोयल।''
'' मेरा नाम माधवी है।''
'' ओह हाँ, माधवी जी, आप आइये मेरे साथ! मि गोयल हम ले जा सकते हैं इन्हें?''
'' हाँ, जरूर। पर मेरे लिये?''
'' उसका भी बन्दोबस्त करते हैं।''
'' कितना खुबसूरत नाचती हैं आप! ''
'' हँहाँ...। थैंक्स। ''
'' कैसे सीख लिया यह सब? कितना जादुई परिवर्तन है! हम सोच भी नहीं सकते थे कि इस सादगी के भीतर इतनी सुन्दरता छिपी हो सकती है।''
'' कोई नहीं सोच सकता कि किसके पीछे क्या छिपा है? ''
'' हाय, क्या बात है? फिलॉसफरों जैसी। आपने फिलॉसफी पढी है?''
'' हाँ।''
'' कितना खुबसूरत नाचती हैं आप! मुझे यकीन है, इस फ्लोर के सबके खूबसूरत जोडे हमीं हैं। आपके साथ नाच में मैं खुद को कितना अद्भुत पाता हूँ।''
'' यह सबकी अपनी पर्सनल सोच है।''
'' आपको नहीं लगता ऐसा?''
'' नहीं, मुझे तो लगता है, आप मेरे ऊपर लदे जा रहे हैं। जरा ढंग से चलाइये पैर।''
'' ओह...यह अदा है या क्रूरता? ''
'' सच्चाई।''
'' हमें हर वक्त सच्चाई की जरूरत नहीं होती मिसेजसॉरी माधवी।''
'' होती है, मि सिन्हा। हम पता नहीं क्यूं हर वक्त झूठ बोलते रहते हैं।''
'' इतना सच आप अपनी निजी जिन्दगी में भी बोलती हैं?''
'' हाँ।''
'' तो फिर समझ लीजिये। गई वह।''
'' क्या?''
'' जिन्दगी।''
''आप तो दो ही पैग में ही लडख़डाने लगीं माधवी।''
'' जी। माधवीजी।
'' हाँ - हाँ, सॉरी माधवी जी।
'' हाँ, मैंने पहली बार पी है।
'' आपने पहली बार आज बहुत से काम किये होंगे।''
हाँ, पहली बार।''
'' खुश हैं आप ?''
'' हाँ, बहुत।आज मैं अपने पिंजडे से निकल ऊपर आसमान में आ गई हूँ। अपने अतीत, संस्कारों और मूल्यों का पिंजडा छोड क़र। और उडना कितना सुखद है, नहीं?
'' हाँ, पर लौट आइयेगा जल्दी।''
'' एक बात कहूँ?''
'' कहिये।''
'' तुम लोग सोचते हो कि पंछी उडना भी सीख जाये और वापस इसी पिंजडे में आ जाये तो गलत सोचते हो। एक बार उडना सीख लेने के बाद तो फिर पूरा आसमान है उसके लिये। फिर वह वापस पिंजडे में क्यूं आना चाहेगा?''
'' फिर भी बाहर भी वह कितने दिन जियेगा?''
'' जितने भी। जीवन अपना हो तो चन्द पलों का भी अपना लगता है। नहीं तो रहो जीते साल दर साल। क्या फर्क पडता है?''
'' हम भी तो लौटते हैं अपने पिंजडे में। और रात भर तो आप हमें अपना गुलाम बना कर रखती ही हैं।''
'' नहीं, आप पिंजडे में नहीं लौटते, शाख पर आ टिकते हैं। अगली किसी उडान के लिये ताकत बटोरने। कुछ भी आपके लिये बंधा नहीं है। जीवन सहज, नित नया प्रवाह। हमारे लिये तालाब का सडता हुआ पानी। मि सिन्हा, जीवन की खूबसूरती झरने की तरह उसके टूट कर गिरने और बिखर जाने में है। बाकी तो बस पानी का महज फैलाव भर है।''
'' माय गॉड, आप ऐसी ही बातें मि गोयल के साथ करती हैं? ''
'' नहीं, सिर्फ अपने आपसे।''
'' मि गोयल को देखा आपने? ''
'' नहीं।''
'' वे किसी खूबसूरत चिडिया के साथ नाच रहे हैं।''
'' तो।''
'' तो, कुछ नहीं? ''
''नहीं, मैं जो आपके साथ नाच रही हूँ। अपनी तरह से जीने का हक तो सभी को है। और आप क्या समझते हैं, ये पार्टीज, ये नाच - गाने, ये म्यूजिक़ कोई जिन्दगी के मजे करने के लिये है? दरअसल मि सिन्हा, हम सबसे जिन्दगी खो गई है और हम उसे ढूंढ रहे हैं। पुरुष स्त्री को ढूंढ रहा हैपरफैक्ट स्त्री को। स्त्री पुरुष को ढूंढ रही हैपरफैक्ट पुरुष को। ये दो विपरीतताएं हैं औरविपरीतता में ही आकर्षण है। एक जैसा होने की कोशिश इन्हें एक दूसरे से दूर फेंक देती है।''
'' आपको चढ ग़ई है माधवी जी।''
'' चढी नहीं मि सिन्हा, आज तो उतर रही है। जाने कितने भ्रमों, सपनों और विश्वासों की शराब उतर रही है। आज तो मैं वो देख पा रही हूँ, जो मैं हूँ।''
'' अब अगर तुम थक गई हो तो घर चलें।''
'' हाँ, चलो। मैं सचमुच बहुत थक गई हूँ।''
'' अच्छा मि सिन्हा, गुड नाइट।''
'' गुड नाइट मि गोयल, संभाल कर ले जाइएगा इन्हें।''
'' तुम्हें शर्म नहीं आती ऐसी हरकतें करते हुए पार्टी में? ''
'' शर्म क्यूं? और पार्टीज होती किसलिये हैं? बेशर्मी के लिये ही तो। और बाकी सब वहाँ क्या करते हैं? ''
'' सबसे अपनी तुलना मत करो।''
'' मैं नहीं, तुम करते हो तुलना, अपनी सुविधा और समझ से। कभी तुम्हें मेरे गंवारूपन से एतराज होता है, कभी बोल्डनेस पर।''
'' बकवास मत करो। स्त्रियों के लिये कुछ सामाजिक मर्यादायें होती हैं।''
'' हाँ सिर्फ स्त्रियों के लिये।''
'' तुम जानती हो, तुम्हारी इस हरकत से बच्चों पर क्या प्रभाव पडेग़ा।''
'' तुम जानते हो? इसके पहले सोचा तुमने इस तरह? हर आदमी सिर्फ अपनी ही दुनिया में जीता है मि गोयल। पति - पत्नी - बच्चे। हम मिलने का नाटक जरूर करते हैं मिलते कभी नहीं। हमारी दुनियाएं रोज रोज टकराती हैं एक दूसरे से। मिलना तो असंभव है।''
'' बहुत घमण्ड हो गया है तुझे अपनी फिलॉसफी पर। बातें तो ऐसे करती हैज्यादा बकवास की तो हाथ पैर तोड क़र घर बैठा दूंगा।''
'' कोशिश करके देख लेना।''
'' अच्छा...तो?''
'' मैं जा रही हूँ।''
'' कहाँ? ''
'' रहने का भी बन्दोबस्त कर लिया है।''
'' अच्छा, एक पुरुष भी तो नहीं ढूंढ लिया है?''
'' नहीं उसकी कोई जरूरत नहीं। एक अनुभव ही काफी है।''
'' देखो, बहुत बात मत करना।''
'' मैं बात नहीं कर रही। जा रही हूँ, अपनी मर्जी से सब छोडक़र।''
'' सब छोडक़र? सोच लो, लौट के मत आ जाना कहीं। एक बार गई तो।''
'' एक बात कहूँ। जीती हुई औरत कभी घर नहीं लौट सकती। हमारे समाज में घर एक राहत की सांस लेने की जगह नहीं, जाने कितनी दुविधाओं, मुश्किलों, चिन्ताओं, परेशानियों, कुंठाओं का अजायबघर है। यह पांव की ऐसी बेडी है, जिससे एक बार छूटने के बाद कोई वापस नहीं आना चाहेगा। यहां सिर्फ हारी हुई औरतें पनाह लेती हैं क्योंकि फिर वे इसके सिवा कहाँ जायेंगी? ''

जया जादवानी
मार्च 14, 2003

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