बाँझ पोस्टमार्टम: आहत मातृत्व
चीर घर की ओर शव परीक्षा ( पोस्टमार्टम) के लिये जाते हुए ज्यूरिस्ट डॉ लाट ने अपने सहयोगी से पूछा,
'' क्या केस है? ''
'' जी एल्यूमीनियम फॉस्फाईड पॉइजनिंग का।'' सहयोगी डॉक्टर ने उत्तर दिया। '' ''आत्महत्या? '' मन ही मन सोचते हुए डॉ लाट ने संक्षिप्त सवाल किया। उन्हें ध्यान आया कि एल्यूमीनियम फॉस्फाईड नामक इस कीटनाशक से होने वाली यह तीसवीं मौत है जिसका पोस्टमार्टम वे करने जा रहे हैं। तीस मौत और वे भी केवल इस एक साल के दौरान!
'' जी, आत्महत्या।'' सहयोगी डॉक्टर से अपने प्रश्न का उत्तर सुनकर सोच में डूबे डॉ लाट कुछ चौंके। द्यो लम्बे समय से इस पद पर काम कर रहे हैं लेकिन उन्होंने जहर खाकर मरने वालों की इतनी संख्या एक साल में कभी नहीं देखी। जहर खाकर आत्महत्या के केस पहले भी आते थे, लेकिन अस्पताल पहुंचने वाले अधिकांश बच जाते थे। लेकिन इस कीटनाशक को खाकर तो कोई भी नहीं बचा। जिसने आधी गोली भी खाई, वह भी पोस्टमार्टम रूम में ही पहुंचा। तो क्या इस नये कीटनाशक के कारण ही इतनी मौतें हो रही हैं? इसी कीटनाशक को खाकर इतने लोग मरे हैं इसका मतलब है यह सरलता से सुलभ है। अगर यह कीटनाशक इतना खतरनाक जहर है तो इसकी बिक्री पर रोकथाम क्यों नहीं है? वह घर घर में घरेलू कीटनाशक के रूप में क्यों उपलब्ध है?
उन्होंने इस विषय में अधिकारियों का ध्यान भी दिलाया था। स्वयं खुद भी कलक्टर आदि से मिले थे। लेकिन किसी ने इस विषय को गंभीरता से नहीं लिया। वरन् कुछ ने तो यह भी कहा कि जिसे आत्महत्या करनी है वह यह नहीं तो कोई और जहर खाएगा, या कुछ और करेगा। लेकिन डॉ लाट जानते थे कि हर जहर खाने वाला आत्महत्या नहीं करना चाहता। भावावेश में अनेक ऐसा कर बैठते हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे मरना चाहते हैं। जहर सामने पडा हो, सहज उपलब्ध हो तो झगडे, विवाद, विरक्ति से भरी स्त्रियाँ अकसर इस ओर लपक लेती हैं। खतरनाक जहर का घरों में सहज उपलब्ध होना डॉ लाट के ख्याल से ठीक नहीं था। उन्होंने प्रश्न पूछकर सहयोगी डॉक्टर से मृत स्त्री के आत्महत्या करने का कारण जानना चाहा। उत्तर तीसरे डॉक्टर ने दिया जिसने वार्ड में जाकर मरीज को देखा था और सब जानकारी हाासिल की थी।
'' जी, बाँझपन को लेकर पति - पत्नी में कहा - सुनी हुई थी शादी को सात साल हो चुके थे। घर के सभी लोग इसके लिये पत्नी को दोषी मानते थे। पति दूसरी शादी करना चाहता था और इसीलिये दोष लगा कर चाहता था कि पत्नी छोडक़र चली जाये। तकरार के समय सामने अलमारी में कीटनाशक गोलियां रखी थीं, बस तैश में आकर उसने डब्बी खोली और गोली खाली।''
डॉक्टर की आँखों के सामने वार्ड का दृश्य सजीव हो उठा। महिला को जब वार्ड में लाया गया तब वह बिलकुल होश में थी। उसे खूब प्यास लग रही थी। कुछ सांस भी उखडी हुई थी। सुन्दर और हृष्ट - पुष्ट महिला को उस समय देखकर कोई यह नहीं सोच सकता था कि वह कुछ ही समय की मेहमान है। करने को सभी कुछ किया गया। ग्लूकोस की बोतलें चढाई गईं। अनेक दवाएं दी गईं। लेकिन जैसा कि डॉक्टर अनुभव से जानते थे कि उस जहर में किसी दवा का कुछ असर नहीं होता। गोली पेट में जाते ही तीव्र गति से जहरीली गैस पैदा करती है जो शीघ्र सारे शरीर में फैल जाती है। और फिर कोई ऐसी दवा नहीं जो जहर को खत्म कर सके।
महिला का कुछ समय बाद रक्तचाप गिरना शुरु हुआ तो किसी दवा से ऊपर नहीं उठा। बेहोशी आई और देखते देखते दो घंटे में सब कुछ खत्म हो गया।
चीरघर पास आ गया था। बाहर इधर उधर बैठे लोग डॉक्टर को आता देख उठ खडे हुए थे। कुछ लोगों ने हाथ जोड क़र नमस्कार किया। इन बुझे चेहरों, मासूम और चुप बैठे लोगों में पति कौन था,कहना मुश्किल था।
हाथ के कागज पेन नीचे कर दरोगा और साथ के सिपाही ने सलाम किया तो डॉ लाट ने पूछा, ''क्या, शुरु करें? ''
'' जी, हाँ।'' दरोगा ने कहा। '' शिनाख्त करवा ली है, पंचनामा भी करीब करीब पूरा हो गया है। आप शुरु करें सर, वरना शाम हो जायेगी।''
चीरफाड क़रने वाले कर्मचारी ने नमस्ते कर चीरघर का दरवाजा खोला और डॉक्टरों के अन्दर घुसने के बाद स्वयं अन्दर आकर दरवाजा बन्द कर लिया।
डॉक्टर कमरे में सीढीनुमा बनी गैलरी में खडे हो गये। इसी गैलरी में खडे होकर डॉक्टरी पढने वाले छात्र शवपरीक्षा देखते हैं।
नीचे टेबल पर शव पडा था। पास ही औजार, खाली बर्नियां और फॉर्मलीन से भरे जार रखे थे। सभी तैयारियां हो चुकी थीं। इन्हीं बर्नियों में अंगों से निकाले गये टुकडे क़ेमिकल एक्जामिनर को रासायनिक परीक्षण के लिये और पैथोलॉजी विभाग की विकृति परीक्षा के लिये भेजे जाते हैं।
इशारा पाकर लाश पर से चादर हटा दी गई। डॉ लाट ने अपने सहयोगी को लिखाना शुरु किया, ''शरीर सुघढ, अच्छी कदकाठी, पोषण अच्छा, अंग सब ठीक, स्तनों का उभार अच्छा, यौनपरिपक्वता के लक्षण मौजूद, रंग गोरा, होंठ हल्के नीले, नाखूनों पर नीलापन नहीं, नाक मुंह से झाग नहीं, बाहरी चोट नहीं।''
कुछ रुककर उन्होंने लाश की पीठ दिखाने को कहा। कर्मचारी ने अभ्यस्त हाथों से लाश पलट कर पीठ दिखाई और साथ ही हाथ पांव मोड क़र दिखाए।
डॉ लाट ने लिखाया, '' मरणोत्तर जमा होने वाला खुन नहीं, मरणोत्तर शारीरिक ऐंठन नहीं।''
उनके चुप होते ही कर्मचारी ने हाथ में चाकू उठा लिया और इशारा पाते ही एक लम्बा नश्तर ठुड्डी से जननेन्द्रियों तक लगा दिया। अपने सधे हाथ से कर्मचारी अपना काम करने में व्यस्त हो गया।
डॉ लाट ने अपने सहयोगी से पूछा, '' कितनी गोलियां खाईं थीं?''
'' जी, सिर्फ एक।'' सहयोगी ने उत्तर दिया। '' किसी बात पर नाराज होकर इसके पति ने बाँझ - कुशगुनी का ताना दिया था इसी को लेकर कहासुनी हुई, इसने तैश में आकर पास पडी क़ीटनाशक की डब्बी उठा ली। पति कहता है कि जब तक उसने छनिा तब तक तो वह खोलकर एक गोली गटक चुकी थी। अस्पताल भी जल्दी ही ले आये थे। अस्पताल में भी करने को सभी कुछ किया लेकिन ।''
बीच में ही दूसरे डॉक्टर ने कहा, '' एल्यूमीनियम फॉस्फाईड खाकर आज तक तो कोई बचा नहीं साहब। बहुत ही खतरनाक जहर है।'' पहले डॉक्टर ने जोडा, '' जब से कंपनी ने घरेलू कीटनाशक के रूप में इसका विज्ञापन किया है और बिक्री बढाई है, तभी से यह मौतें शुरु हुई हैं और अब तो।''
'' हाँ, इस साल की तो यह तीसवीं मौत है।'' डॉ लाट ने बीच ही में कहा, '' कुछ करना पडेग़ा। कलेक्टर और यहां के अधिकारियों से बात करने से तो कुछ हुआ नहीं।''
तभी पसलियां काटकर कर्मचारी सीना खोल चुका था। डॉ लाट उतर कर पास आ गये। फेफडे दिखाये गये, कुछ नहीं था। हृदय दिखाया गया, उसमें भी विशेष कुछ नहीं था, जो हालत थी वह डॉ लाट ने लिखवा दी।
पेट खोला गया। आमाशय, यकृत, प्लीहा, गुर्दे एक एक कर सब अंगों को देखा गया, डॉ लाट देखते रहे, जरूरत के अंगों के टुकडे ज़ांच के लिये रखवा लिये गये। पेट की सभी शिराएं खुन से खूब भरी थीं और खूब फैली हुई थीं। ऐसा लगता था कि शरीर का अधिकांश खुन यहीं इकट्ठा हो गया था और बाकी शरीर में संचार के लिये बहुत कम उपलब्ध रहा हो। इसके अलावा किसी अंग में कुछ नहीं मिला।
बाँझपन का केस था अत: जननेन्द्रियों का परीक्षण विशेषरूप से किया गया। डिम्बकोश बिलकुल ठीक थे।
गर्भाशय को देखकर डॉ लाट ने कहा, '' है तो बिलकुल स्वस्थ, लेकिन कुछ बडा नहीं लग रहा? ''
'' हाँ, थोडा सा तो लग रहा है।'' सहयोगी डॉक्टर ने कागज पर नोट करते हुए सहमति व्यक्त की।
गर्भाशय काट कर खोला गया। अन्दर महीन स्पंजनुमा तंतुओं का गुच्छा सा था, जिसे तीनों डॉक्टर आश्चर्य से देखने लगे। डॉ लाट ने पूछा '' यह क्या है? ''
सहयोगी ने उत्तर दिया, '' मालूम नहीं साहब, कोई विल्लस टयूमर लगता है। शायद इसी कारण बांझ रही हो।''
डॉ लाट ने गर्भाशय पैथोलॉजी विभाग में भेजने का आदेश दिया।
शवपरीक्षा खत्म होने पर उन्होंने कर्मचारी से कहा, ''ठीक से सिलाई और अच्छी तरह से सफाई कर जल्दी बॉडी दे देना।''
दूसरे रोज डॉ लाट के पास पैथोलॉजी के प्रोफेसर डॉ चौबे का फोन आया।
'' कल पोस्टमार्टम का किया वह क्या केस था? '' फोन पर डॉ चौबे ने पूछा।
एल्यूमीनियम फॉस्फाईड की गोली खाकर आत्महत्या का। स्त्री बांझपन से दुखी थी। पति भी उसी बात से परेशान रहता था। गुस्से में पति ने कोई कडवी बात कहदी और तैश में औरत ने गोली खा ली।'' डॉ लाट ने बताया।
'' कुछ नहीं कर रहे तो पांच मिनट के लिये यहाँ आओ।'' डॉ चौबे ने कहा तो डॉ लाट '' अभी आया ''कह कर उठ खडे हुए।
सहयोगी डॉक्टर भी साथ हो लिये। लैब में डॉ चौबे सफेद कोट पहने बैठे थे, पास में टैक्नीशियन और डॉक्टर खडे थे। एक ट्रे में वही स्पंजनुमा तंतुओं का गुच्छा रखा था, जो उस औरत के गर्भाशय में मिला था।
उनके पहुंचते ही डॉ चौबे ने कहा, '' बांझपन की बात इन लोगों को मालूम नहीं है, जरा इन्हें भी बता दो।''
सहयोगी डाक्टर बता रहा था तो पैथोलॉजी विभाग के काफी डॉक्टरों के चेहरे पर घोर आश्चर्य का भाव देखकर डॉ लाट सकपका गये। उन्होंने प्रश्नसूचक नजरों से डॉ चौबे को देखा।
डॉ चौबे ने बिना कुछ बोले ही फोरसेप्स उठाई और उस गोल गुच्छे में लगाये गये नश्तर के किनारों को अलग कर हटा दिया।
जो दिखा उसे देख कर डॉ लाट और उनके सहयोगी डॉक्टरों के मुंह आश्चर्य से खुले रह गये। गुच्छे के अन्दर के कोने में था नन्हा सा एक महीने का गर्भस्थ भ्रूण और जिसे वे जालनुमा टयूमर समझ रहे थे वह था गर्भ के चारों ओर का आवरण जिससे गर्भ गर्भाशय से जुडा रहता है।
डॉ श्रीगोपाल काबरा
फरवरी 14, 2003
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Sunday, December 20, 2009
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